खुद शर्म आज शर्मिंदा है
विपक्ष का मुद्दा मणिपुर सरकार का राजस्थान
सब राज नेतावोंने मील के कर दिया
इस देश का बंटाधार ।। धृ ।।
जनता गयी तेल लगाने , जिसे जीना है जीए , जिसे मरना है मरजाए बस मेरी प्यारी खूर्सि कभी ना जाए
बस यही हमारी तमन्ना और यही हमारा एजेंडा
भाई जो कुछ हो रहा है उसपर तो
जनता शर्मिंदा है हम नही
हम ने तो कब की शर्म बेच खाई
तभी तो हम राजनेता है
भले ही खुद शर्म आज शर्मिंदा हो
हम बेशर्मोकी तऱ्हा ही बयान बाजी करेंगे
दुनिया मे भला कोण दूध का धुला है,
जो हम पे आरोप धरेंगें
जनता के सेवक बस कहने की बात है साहब असलियत मे तो हम सम्राटों के भी सम्राट है
भला हमे काहे का डर
दुनिया में नही बची अक्ल दो हमारा क्या दोष?
जनता को नही समझ आती बात तो हम क्या करे
हम सब तो कब से चीख चीख कहे रहे है
की हम झूठे मक्कार है
बस बात हो गयी खत्म
चाहे जलता रहे मणिपुर
चाहे मरती रहे बेटिया राजस्थान मे,
चाहे जल जाए सारा देश ,
चाहे जाए सारी दुनिया भाड में
हमारी बला से , हमे क्या लेनादेना
हम तो बस मस्त है अपनी अपनी दुकानोंमे
तू सामान्य नारी है नही कोई याज्ञसेनी
जिसकेलिये पधारे स्वयं नारायण
तेरी किस्मत मे तो हम जैसे राजनेता ही है
ना तेरी उतनी तपस्या है ना हम इतने पुण्यवान
चल छोड जाने दे
वरना कही बंद ना हो जाये हमारी दूकान
पैसा चाहिये तो ले जा, ढापले आपने आप को
चाहे मणिपुर हो या राजस्थान
चाहे विपक्ष हो सत्ता मे और सत्ता हो विपक्ष मे ,
क्या फर्क पडता है तुझे ,
हम बेशर्म हो कर कहते है तुझसे,
तू तो बनी ही है शिकार होने के लीए
बस चर्चा ही करते रहेंगें हम तेरे दर्दों पे
संवेदनाहीन हो के
चाहे टी व्ही हो या संसद
बस एकदूसरे के नाम से चिल्लाते रहेंगे,
हम क्या बोलरहे है
ये हमको खूद नही समझ मे आता
तो तुझको क्या समझांएगें
चिख चिल्ला के थक जाए
तो एकदूसरे को शरबत पिलाएंगे
कल जो भ्रष्टाचारी थे आज वो हमारे साथ हो लिये तो बस गंगा नहाये है
और आज जिसे छोड जाने पर
हम गद्दार गद्दार पुकार रहे है
क्या पता कल वोही होजायेंगे हमारे प्राणनप्यारे
यही तो राजनीती है
जनता को कहा से समझ मे आती है
हम तो एसे ही ठगते रहेंगे जनता को
विकास के नाम पर
एसे ही जाते रहेंगे यान चाँद पर,
सात सात होते रहेंगे थाली से एसे ही कभी टमाटर, कभी आलू तो कभी प्याज गायब
क्या हूवा जो देश मे मेहेंगाई भडकी है
दुनिया मे तो देश की अर्थव्यवस्था
बडी मजबुत खडी है
ये एसे ही गाते रहेंगे हम
विदेश मे कभी हमारे संस्कृति का कभी हमारे सहिष्णुता का गुणगान
चाहे मरजाए शर्म खुद शर्मिंदा हो कर
हमे नही पडता कोई फर्क
जब तक सोई है जनताजनार्दन
धर्म का अफीम लगाए चादर तानकर
✍️ *लेखिका : डाॅ रेश्मा पाटील*
🇮🇳 *निपाणी*
🗓️ *तारीख : 24/7/2023*
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