परमप्रीय


  

परमप्रीय

हर मन में तुम्ही बसे हो 

सब ग्रंथो का अर्थ हो तुम 

हर धर्म का आधार हो तुम 


सब पंथोने किया तुम्हे वर्णित

सब संतोने किया तुम्हे प्रणीत 

सब शास्रो के हो तुम्ही कर्णित


निराकार साकार तुम्ही हो 

सृष्टिका आभास तुम्ही हो

जीवन का आधार तुम्ही हो 


जो पुकारे तुम्हे दिलसे 

होते हो तुम उसे सहाई

फिर चाहे हो वो कोई प्रणाई 


जो प्रेम करे तुम्हें अंतरसे 

जो प्रेम करे तुमपे ह्रदयसे

 सुनते हो तुम उसकी दुहाई 


फिर चाहे वो तुम्हे किसी रूप में

फिर देखे वो तुम्हे किसी रूप में

आते हो पास उसी रूप में


भूलाके उसके सारे अवगुण 

लगा लेते हो उसे ह्रदयसे 

भाग्य उसका किया न जाये वर्णित


ईश्वर पुकारो , अल्लाह कहो 

बुलाओ चाहे उसे जिजस 

राम कहो, रहीम कहो 

कन्हैया कान्हा मनमोहन पुकारो 


रसुलुल्लाह कहो चाहे महबुबे खुदा  कहो

चाहे तुम उसे येशु इसामसी बुलाओ 


नाम नहीं उसे कोई फिर भी 

प्रेम से तुम किसी नाम बुलाओ


अगर प्रेम हो तुम्हारा उस परमात्मासे

अगर चाहते हो तुम उसे आत्मासे

होता है वो विराजमान तुम्हारे ह्रदय में

चाहे तुम एक अदनासा कतरा हो जीवनके धुलका 


नही चाहेए उसे मंदिर मस्जीद 

गिरिजा या गुरूव्दारा

चहिये उसे तुम्हारे मनमंदिर 

मन को अपने बनाओ शिवाला 


मन में जब वो लीलाधर राजे 

बाधेगी नहीं तुम्हे कोई बाधा

व्देश नहीं कर पाओगे किसी रचनासे 

लगेगा तुम्हें कोई नहीं पराया 


चाहे मंदिर में पूजा करो

चाहे मस्जीद में नमाज अदा करो 

चाहे प्रार्थना करो गिरजा में

चाहे माथा टेको गुरूव्दारे में  


अगर प्रेम नही उस परमात्मासे

उसकी बनाई रचना से 

तो जान लो सब कर्मकांड है 

इबादत नही ये उसकी इबादत नही 


पूजा,नमाज,प्रार्थना 

साधन है सब साध्य नहीं है पावित्र्य है, मांगल्य है, सामर्थ्य है इन में

 तब है जब मन में प्रभू का प्यार बसा हो


अगर प्रेम है तुम्हे प्रभुसे

साधना सधनों से ना भी कर पाओ

फिर भी साधना साध्य प्राप्त करेगी तुम्हारी 

तुम केवल प्रेम बरसाओ प्रभुको चाहो 


माता बुलाओ , पिता पुकारो

पती-पत्नी , पुत्र-पुत्री वो

बंधु सखा प्रेमी बनाओ 

जीवन का उसे धनी बुलाओ 


फिर चाहे किसी भी साधन से साधना करो तुम 

सब कुछ बस प्रेमसे  प्रभु को अर्पणाओ तुम 

जगत के हर कणकणमें है वो

 देखलो उसे मन की आँखो से देख लो 


हिंदु,मुस्लीम,शीख,इसाई

सब पंथो के सब ग्रंथोंने

यही जीवन रहस्य बतलाया

फिर भी उनके अनुयाई 

क्यों करते है व्यर्थ लड़ाई ?


साधनाका सब से प्यारा साधन प्रेम है 

साधना का साध्य प्रेमरूप परमात्मा परमप्रिय है

क्षमा,शांती,भक्ती ,सब प्रेम की शक्ती है 


प्रेम हो मनमें हर प्राणी के लिए 

जीव जगत सृष्टी के लिए 

यही ईश्वर की भक्ती है , यही ईश्वर की भक्ती है 


सृष्टीपर प्रेम हो कैसा ?

जल में कमल-पत्र जैसा

परमप्रिय ईश्वर पर प्रेम हो कैसा?

अनुपम उस जैसा,प्रेमरूप परमात्मा जैसा 


प्रेमरूप परमात्मापर प्रेमाभक्ती हो ऐसी 

राधा की तडफ, मीरा के वैराग्य जैसी 

इसामसी के बलीदान, क्षमा-प्रेम जैसी

मेहबुबे-खुदा के मोहब्बत जैसी 


पर हाय रे प्रवंचनें मानवने ये क्या चाहा 

पंथो के मान्यताओमें परमस्वतंत्र को बंदी बनाना चाहा 


मानव की अब हालत है ऐसी

गजराज को वर्णित करने के लिए लड़ते अंधो जैसी 


अब तो साधना के साधनोपे झगड़ता है आदमी 

साध्य क्या प्राप्त करे वो,

साधना का अर्थ भूल गया है आदमी 


चाहे किसी भी पंथ का हो अनुयायी

आँखो पर स्वार्थ की बांधे पट्टी फिरता है आदमी 


अब तो अपनी मान्यताओं के लिए 

दहशत का नंगा-नाच करता है आदमी 

भाईचारा प्रेम भूला के गुन्हाएं आज़मी करके भी 

खुदा को चाहने का दावा करता है आदमी 


इन्सानियत की चढा के बली अहंमपें अपने 

खुदा-परस्ती का दम भरता है आदमी 


इसामसी की शिक्षा, रसुलूल्लाह का प्यार ,

श्रीकृष्ण का गीतार्थ॔ , श्रीराम का चारित्र 

सब कुछ भूला चुका है आदमी


संतो का उपदेश , गांधी की अहिंसा 

कुछ भी याद नहीं उसे 

शायद अपनी आत्मा भी खो चुका है आदमी 


अपने स्वार्थी अहंकार को, बता के खुदा की मर्जी 

खुदाई को बदनाम करना चाहता है आदमी 


खुदा ही मालिक है , ऐसे इन्सानोका 

हैं! ये क्या गहजब करना  चाहता है आदमी 


अगर इस संसार में सच्चे दिल से इबादत हो प्रभू की 

ये चाहता है आदमी 

तो जान लो इबादत कभी होती नहीं जबरदस्तीसे ये  आदमी 


इबादत तो जजबा है खुदा-परस्ती का 

इबादत तो जरिया है खुदा को पाने का 


इबादत के है तरीके बेसुमार 

हर रास्ता तय करता है मंजिल 

अपने वसुलोंके साथ मगर 

प्यार से बडा कोई रास्ता नहीं 

इबादत का जमाने में 


प्यार वो शय है, जिस से रोशन होता है दिल का चिराग 

जिस में झगमगाती है , इन्सानियत खुदाई के साथ 


प्यार वो शय है , जो बनाती है जर्रे को आफताब

प्यार से जगमगाती है दुनियाँमें चांदणी 

दुर कर के नफरत का अंधेरा 


प्यार क्या है एक कतरा है शबनम का 

प्यार क्या है  एक  दिया है मन का 

प्यार क्या है एक जज्बा है तन का 

प्यार क्या है एक अंश है ईश्वर का 


प्यार के दम से दुनियाँ कायम है 

प्यार आधार है सृष्टि में जीवन का 

प्यार से बडी इबादत नहीं ईश्वर की 


प्यार ईश्वर बना देता है इन्सान को 

प्यार ही इन्सान बना देता है ईश्वर को 


प्यार झलकता है माँ की ममता में 

प्यार तो पहचान है इन्सानियतकी दुनियाँ में 


दुनियाँ का हर जर्रा रंगा है प्यार के रंग में 

प्रेमरूप परमात्माके रंग में 


बस यही दिलोजानसे जान ले 

सब कुछ परमात्मा को मान ले 

तो परमप्रिय परमात्मा को पा लेगा आदमी ।


✍️ *कवयित्री : डाॅ रेश्मा पाटील* 

 🇮🇳 *निपाणी*

🗓️ *तारीख :18/2/2003* 

📱  *मो नं 7411661082*

📲 *व्हाटसअॅप नंबर * *: 9901545321*  

📧 *ईमेल :* *reshmaazadpatil@gmail.com* 

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Articles

प्रा.डाॅ. रेश्मा आझाद पाटील M.A.P.hd in Marathi

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