मणिपुर एक सुलगता सच

 मणिपुइर एक सुलगता सच


जातीय हिंसा ने भारत के छोटे से राज्य मणिपुर को इस स्थिति में धकेल दिया है कि कई लोगों ने इसे गृहयुद्ध की स्थिति करार दिया है, क्योंकि दो सबसे बड़े समूह, बहुसंख्यक मैतेई और अल्पसंख्यक कुकी, भूमि और प्रभाव पर लड़ाई कर रहे हैं तो क्या इसे भाजपा की विचारधारा जिम्मेदार है ?  

मणिपुर मे आज जो कुछ हो रहा है उसे समझने के लिये मणिपुर की जनजातीया और उनकी मान्यताएं सविस्तर  जानना जरूरी है । 

मणिपुर का परिचय : 

मणिपुर की राजधानी और राज्य का सबसे बड़ा शहर इम्फाल है। राज्य के उत्तरी भाग में नागालैंड, पूर्वी भाग में म्यांमार और पश्चिमी भाग में असम, दक्षिणी भाग में मिज़ोरम से स्थित है। मणिपुर का शाब्दिक अर्थ 'मणि की धरती' या 'रत्नों की भूमि' है।

मणिपुर के महाराज ने शिलॉन्ग में 21 सितंबर 1949 को भारत के साथ विलय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। 15 अक्टूबर 1949 को भारत का अभिन्न अंग बन गया मणिपुर। इसकी औपचारिक घोषणा भारतीय सेना के मेजर जनरल अमर रावल ने की थी। मणिपुर का भारत में विलय करने वाले महाराजा बुधाचंद्र का निधन 1955 में हुआ।

मणिपुर को दक्षिण एशिया का दरवाजा भी कहा जाता है, जवाहरलाल नेहरू ने मणिपुर को भारत के गहने के नाम से नवाजा था, प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ मणिपुर राज्य पोलो खेल के लिए भी जाना जाता है पोलो खेल की शुरुआत भी यहीं पर हुई थी, मणिपुर का पुओन लाईसेन नाम का लाल धारियों वाला वस्त्र पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।

 भूगोल

मणिपुर (कंगलैपा) का क्षेत्र पहाड़ी है और इस प्रकार, प्राचीन मणिपुर में कई छोटे क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी बोली, सांस्कृतिक विशिष्टताएं और पहचान है।

मणिपुर के लोग

यहाँ तीन प्रमुख जनजातियाँ निवास करती हैं। घाटी में मीतई जनजाति और बिष्णुप्रिया मणिपुरी रहती है तो नागा और कूकी-चिन जनजातियाँ पहा‍ड़ियों पर रहती हैं। प्रत्येक जनजाति वर्ग की खास संस्कृति और रीति रिवाज हैं जो इनके नृत्य, संगीत व पारंपरिक प्रथाओं से दृष्टिगोचर होता है।

 मीतई जनजाति

मैतै या मणिपुरी पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर राज्य का बहुसंख्यक समुदाय है। वे मणिपुर के मूल निवासी हैं इसलिए उन्हें मणिपुरी भी कहा जाता है। मैतै लोग मणिपुरी भाषा बोलते हैं जो तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की सदस्य है।

धर्मिक दृष्टि से अधिकतर मैतै हिन्दू हैं। इनकी मान्यताओं में 'सनमाही' नामक विश्वास-पद्धति भी शामिल है जिसमें ओझाप्रथा के कुछ तत्त्व हैं। मैतै समुदाय के एक महत्वपूर्ण पूर्वज के बारे में मान्यता है कि वे पाखंगबा (अझ़दहा-रूपी देवता) के रूप में प्रकट हुए थे।

 *पाखंगबा (अझ़दहा-रूपी देवता)* 

पाखंब या इबुधोऊ पाखंब एक दिव्य प्राणी हैं जिनके प्रति भारत के मणिपुर क्षेत्र में लोग भारी आस्था रखते हैं। इन्हें अधिकतर सर्प-शरीर और मृग-सींगो रखने वाले एक अझ़दहा (ड्रैगन) के रूप में दर्शाया जाता है। गणतंत्र की स्थापना से पहले जब मणिपुर एक रियासत था तो इन्हें कई राजकीय चिन्हों में दर्शाया जाता था। माना जाता है कि इनका वास तालाबों, पर्वतों, गुफाओं, वनों व अन्य पवित्र स्थानों पर रहता है। मणिपुर के मेइतेइ समुदाय के एक महत्वपूर्ण पूर्वज के बारे में मान्यता है कि वे पाखंगबा के रूप में प्रकट हुए थे

 मेइतेइ पूर्वज

मान्यता है कि द्वापर युग के अंत में और कलियुग के आरम्भ मे मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा और अर्जुन के पुत्र बब्रुबाहन का पुत्र हुआ जो दिन में देवताओं और रात में पुरुष का रूप धारण करता था। 

अन्य वर्णनों में कहा गया है कि "ब्रह्मदेव नारायण के नाभि-कमल से जन्में, मारीचि मुनि ब्रह्मदेव की भुजाओं से जन्में। मारीचि के पुत्र कश्यप मुनि, कश्यप के पूत्र सूरज, सूरज के पुत्र शबोर्न मुनि, शबोर्न के पुत्र इन्दु मुनि, इन्दु के पुत्र चित्रकेतू, चित्रकेतू के पुत्र चित्रधज, चित्रधज के पुत्र चित्रबीज, चित्रबीज के पुत्र चित्रसर्ब, चित्रसर्ब के पुत्र चित्ररत, चित्ररत के पुत्र चित्रवाणू। चित्रवाणू का कोई पुत्र न होकर चित्रांगदा नामकऐ पुत्री थी जिसका विवाह अर्जुन से हूवा। चित्रांगदा और अर्जुन के पुत्र बब्रुबाहन। बब्रुबाहन के पुत्र सूप्रबाहू और सूप्रबाहू के पुत्र पाखंगबा (जोबिस्ता) थे। पाखंगबा मणिपुर के पहले सम्राट बने।

प्राचीन मणिपुर का शाही इतिहास 1445 ईसा पूर्व में तंगजा लीला पखंगबा के शासनकाल के साथ शुरू हुआ था।

पोलो (सगोल कांगजेई) के खेल का आविष्कार तांगजा लीला पखंगबा के उत्तराधिकारी राजा कांगबा (1405 ईसा पूर्व-1359 ईसा पूर्व) के शासनकाल के दौरान हुआ था । यह उल्लेखनीय उपलब्धि कई प्राचीन मणिपुरी शास्त्र सहित कांगबालोन और कांगजैलोन में दर्ज की गई है।

प्राचीन मणिपुर या प्राचीन कंलैपाक् वर्तमान मणिपुर के मध्य मेदान में प्रचलित एक प्राचीन सभ्यता है। १४४५ इसाई पूर्व से लेकर ये सभ्यता प्रचलित हैं। इनके कयी राजधानी है, इनमें से कंला सहर सबसे प्रमुख राजधानी है।

 प्राचीन धर्म 

पहाड़ियों और मैदानों की स्वदेशी जातियों का प्राचीन धर्म सनमाही धर्म है । अंतरिक्ष समय इकाई की अमूर्त अवधारणा ब्रह्मांड का परम ईश्वर निर्माता है। प्राचीन मणिपुर की सभ्यता की शुरुआत से ही दैवीय और उसके बाद के जीवन में विश्वास निहित था। प्राचीन शासक राजाओं के दैवीय अधिकार पर आधारित थे।

 मध्यकालीन मान्यताएं

मध्यकालीन मणिपुर प्राचीन काल और आधुनिक काल के बीच मणिपुर के इतिहास की एक लंबी अवधि को संदर्भित करता है । इसमें १५वीं शताब्दी ईस्वी से १९वीं शताब्दी ईस्वी तक शामिल हैं।

महाराज मीडिंगु सेनबी कियंबा (१४६७-१५०७) के शासनकाल के दौरान, अवधि की शुरुआत को आमतौर पर प्राचीन मैतेई विश्वास के धीमे पतन के रूप में लिया जाता है । यह उनके शासनकाल के दौरान ब्राह्मण लोग राज्य में चले गए थे और वैष्णववाद की सूक्ष्म मात्रा हिंदू भगवान विष्णु के रूप में फेय्या (पोंग साम्राज्य से पवित्र पत्थर) की पूजा के साथ आगे बढ़ी ।ई

सम्राट पम्हैबा (गरीब निवास) (1709-1748) के शासनकाल के दौरान, राज्य का नाम "कंगलैपाक" से "मणिपुर" में बदल दिया गया था। यह उनके शासन के दौरान पूरे मैतेई जातीयता के धर्म को जबरन सनमहवाद से हिंदू धर्म में परिवर्तित कर दिया गया था। १७२९ ईस्वी में पूया मै थाबा में सनमहवाद के पवित्र ग्रंथों का ऐतिहासिक दहन हुआ।

 बिष्णुप्रिया मणिपुरी लोग

बिष्णुप्रिया मणिपुरी लोग भारत के मणिपुर तथा असम, त्रिपुरा, बांग्लादेश में के निवासी भारतीय-आर्य लोग हैं। ये लोग विष्णुप्रिया मणिपुरी बोलते हैं जो भारत-आर्य मूल की भाषा है और बांग्ला से भिन्न है। इस भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भाषा इसमें तिब्बती-बर्मी तत्त्वों का सर्वथा अभाव है। बिष्णुप्रिया मणिपुरी लोगों की संस्कृति मैतै लोगों की संस्कृति जैसी ही है, केवल कुछ लोक व्यवहार अलग हैं। बिष्णुप्रिया मणिपुरी धर्म से हिन्दू हैं और यह स्वयं को तॖतीय पाण्डव अर्जुन के व॑शज मानते हैं । इनके पूजापाठ कर्मकांड आदि सभी सामवेद के नियमानुसार होता है और यह चन्दव॑शीय श्रत्रिय है । यह लोग एक ही गोत्र में विवाह नहीं करते हैं । बिष्णुप्रिया मणिपुरी भोजन में चावल , सब्जी , रोटी , दाल , मछली और अ॑डे सामिल करते हैं और इनके समाज में मा॑साहार निषिद्ध है ।

मणिपुर की आधी आबादी मैतेई समुदाय की है  इनका हर क्षेत्र में वर्चस्व रहता है. यह जाति इम्फाल घाटी में मुख्य रूप से रहती है. मणिपुर के कानून के अऩुसार मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ों पर नहीं रह सकते. वहां सिर्फ कुकी और नगा जनजाति के लोग रह सकते हैं

 नागा (बर्मी: နာဂ, अंग्रेज़ी: Naga)

भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं। इनका निवास क्षेत्र भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र व म्यांमार के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में है। भारत में ये नागालैंड राज्य में बहुसंख्यक है। 2012 में यहाँ पर इनकी संख्या 17 लाख दर्ज की गयी। इसके अलावा ये मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश में भी इनकी अच्छी खासी जनसंख्या है।

पारंपरिक रूप से नागा गावों में रहते हैं। इनका मुख्य धंधा शिकार है। ये जंगली जानवरों का शिकार करते हैं। ये अपने घर बास से बनाते हैं। ये योद्धा जनजाति है। इनकी वीरता को ही देख परखकर इनकी शादी होती है।

स्त्रियों की दशा भी इस जाति काफी अच्छी है। इन्हें पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है।

लगभग ९५% नागा ईसाई है। कुछ नागा समूह सर्वात्मवादी भी है।

 प्रमुख नागा जनजातिया

नागाओं की प्रमुखतः ६६ जनजातियां है। प्रमुख १६ नागा जनजातियों कि सूची निम्न है-

अंगमी

एओ

चांग

कोन्याक

मरम

संगटम

तुत्सा

सुमी

वांचू

फोम

पोचुरी

संगमा

सूमी

कूकी

चखेसंग

लोथा

दीमसा कचरी

 *कुकी जनजाति* 

कुकी मंगोली नस्ल की एक आदिवासी जाति है जो असम और अराकान के बीच लुशाई और काचार जिले में रहती है। इनको चिन, जोमी, मिजो (मिज़ोरम में) भी कहते हैं। कूकी लोग भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों, मणिपुर, उत्तरी म्याँआर, बंगलादेश के चित्तग्राम पहाड़ियों पर निवास करते हैं। भारत में अरुणाचल प्रदेश को छोडकर वे सभी उत्तरपूर्वी राज्यों में पाये जाते हैं। अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर उनका बिखरे होना मुख्यतः ब्रिटेन की औपनिवेशिक नीति का परिणाम है।

इसके बोंजुंग कुकी, बायटे कुकी, खेलमा कुकी आदि कई कुलवाची भेद हैं। ये बलिष्ठ एवं ठिंगने होते हैं और नागा लोगों की अपेक्षा अधिक खूंखार समझे जाते हैं। आज से लगभग डेढ सौ वर्ष पूर्व लुशाई और कुकी लोगों में युद्ध हुआ जिसमें कुकी लोगों की हार हुई और वे अपना निवास छोड़कर काचार में आ बसे। उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने प्रश्रय दिया और २०० कुकियों को सीमांत रक्षार्थ सैनिक शिक्षा दी।

कुकी लोग अपने सरदार की आज्ञा का पालन अपना धर्म समझते हैं। सरदार उनका एक प्रकार से राजा होता है और समझा जाता है कि वह दैवी अंश है। इस कारण वे लोग उसका कभी अनादर करने का साहस नहीं करते वरन् वह जो आदेश देता है उसका आँख मूँदकर पालन करते हैं। विशेष अवसर आने पर सरदार संकेत द्वारा आदेश जारी करता है। यदि कोई व्यक्ति सरदार का भाला सुसज्जित रूप में लेकर गाँव में घूमता है तो उसका अर्थ होता है कि सरदार ने सब लोगों को अविलंब बुलाया है। इस वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति अपने सरदार को प्रति वर्ष करस्वरूप एक टोकरी चावल, एक बकरी, एक कुक्कुट और अपने शिकार का चौथा भाग प्रदान करता है और चार दिन की कमाई देता है। सरदार की सहायता के लिए एक मन्त्रिमंडल होता है जिसकी सहायता से वह न्याय करता है।

कुकी लोगों में विश्वासघात की सजा मृत्यु है। खून के अपराध में खूनी और उसके परिवार को गुलामी करनी होती है। स्त्रियों को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं है, उनपर सरदार का आदेश लागू होता है। कुकी लोग 'उथेन' नामक देवता की पूजा करते हैं।

भारत में कुकी लोगों की लगभग पचास जनजातियों को अनुसूचित जनजातियों के रूप में मान्यता दी गई है , जो उस विशेष कुकी समुदाय द्वारा बोली जाने वाली बोली के साथ-साथ उनके मूल क्षेत्र पर आधारित है।

म्यांमार के चिन लोग और मिज़ोरम के मिज़ो लोग कुकी की सजातीय जनजातियाँ हैं। सामूहिक रूप से, उन्हें ज़ो कूकी लोग कहा जाता है ।

कुकी नाम

शब्द "कुकी" एक उपनाम है : इसका उपयोग बंगालियों द्वारा भारत और बर्मा के बीच उत्तर-दक्षिण में फैली हिमालय की सबसे पूर्वी शाखा लुशाई पहाड़ियों में रहने वाली जनजातियों को संदर्भित करने के लिए किया गया था । यह शब्द 1777 में ब्रिटिश उपयोग में आया, जब चटगांव के प्रमुख ने ब्रिटिश गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स से पहाड़ियों से कुकी छापे के खिलाफ मदद की अपील की। 

जनजातियों के इसी संग्रह को बर्मीज़ द्वारा "चिन्स" और ब्रिटिशों द्वारा "लुशाईज़" कहा जाता था। आधुनिक शब्द जो सभी समूहों को शामिल करता है वह है "ज़ो" या "ज़ोमी" (जिसका अर्थ है "ज़ो लोग")। 

समय के साथ, ब्रिटिशों ने वर्तमान में "कुकिस" कहलाने वाली जनजातियों को शेष "लुशाई" से अलग करना शुरू कर दिया। 1907 की एक खुफिया शाखा की रिपोर्ट में कुकियों के बीच राल्ते , पाइते , थाडौ , लाखेर, हमार और पोई जनजातियों को सूचीबद्ध किया गया था। इसमें कहा गया है कि इनमें से प्रत्येक जनजाति की अपनी भाषा थी, और ये भाषाएँ "लुशाइयों" के लिए समझ से बाहर थीं। 

मणिपुरियों ने "खोंगजई" शब्द का इस्तेमाल इम्फाल घाटी के ठीक दक्षिण में रहने वाली जनजातियों को संदर्भित करने के लिए किया था।  मणिपुर के अंदरूनी इलाकों में अन्य कुकी जनजातियों को अभी भी "कुकिस" (या कभी-कभी "पुरानी कुकी") कहा जाता था।

नृवंशविज्ञानी सीए सोपिट ने तर्क दिया कि कुकी और लुशाई कम से कम 11वीं शताब्दी से इरावदी नदी के पश्चिम क्षेत्र में बसे होंगे , इस तथ्य के आधार पर कि उनके पास बौद्ध धर्म का कोई निशान नहीं था जो उस समय तक बर्मा में पहले से ही प्रचलित था।  उन्होंने कुकी-लुशाई जनजातियों को दो व्यापक वर्गों में बांटा: ह्रांगखोल को सह-जनजाति बियाटे के साथ , और चांगसन को सह-जनजाति थाडौ के साथ , उनमें से प्रत्येक को कई उप-जनजातियों के साथ समूहीकृत किया गया।  सोपिट ने सुझाव दिया कि, 16वीं शताब्दी तक ह्रांगखोल और बियाटे लुशाई हिल्स जिले (वर्तमान मिजोरम राज्य) में निवास करते थे।). उन्हें चांगसन द्वारा बाहर धकेल दिया गया, जो थाडौ के साथ पूर्व से चले आए, जिससे उन्हें उत्तरी कछार पहाड़ियों, मणिपुर और त्रिपुरा में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। 19वीं शताब्दी में चांगसन-थडौ गठबंधन को नई जनजातियों द्वारा मजबूर किया गया था, बाद में उस समय "लुशाई" नाम प्राप्त हुआ।

1881 की जनगणना के अनुसार, कुकी और नागाओं की संख्या उत्तरी कछार हिल्स (वर्तमान असम ) में 20,000, नागा हिल्स (वर्तमान नागालैंड ) में 15,000, मणिपुर में 30,000-40,000 और टिपेरा ( त्रिपुरा ) में 6,000 थी। इसके अलावा, कछार के मैदानी इलाकों में 6,000 लोग थे। [18] उसी जनगणना के आधार पर मणिपुर के गजेटियर (1886) में कहा गया है कि मणिपुर में लगभग 8,000 "पुराने कुकी" थे, जो पारंपरिक रूप से राज्य में रहते थे, और लगभग 17,000 "नए कुकी" थे जो लुशाई पहाड़ियों से चले गए थे । 19वीं सदी की शुरुआत में दक्षिण. ]लुशाई हिल्स में कुकियों की भी काफी संख्या थी, जिन्हें 1881 की जनगणना में शामिल नहीं किया गया था।

वर्तमान मे कुकी लोग

कुकी लोग पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों मणिपुर , नागालैंड , असम , मेघालय , त्रिपुरा और मिजोरम ,  के साथ-साथ पड़ोसी देशों बांग्लादेश और म्यांमार में एक जातीय समूह हैं । कुकी भारत , बांग्लादेश और म्यांमार के भीतर कई पहाड़ी जनजातियों में से एक है । पूर्वोत्तर भारत में, वे अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों में मौजूद हैं । 

 धर्म

मुख्य रूप से ईसाई धर्म ( बैपटिस्ट ); ऐतिहासिक रूप से जीववाद , यहूदी धर्म ( बनी मेनाशे ) और इस्लाम का पालन करने वाले बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों के साथ जीववाद संबंधित जातीय समूह चिन  · हलाम  · मिज़ोस  · ज़ोमिस  · अन्य ( कार्बिस , नागा , मेइटिस , काचिन्स )

पारंपरिक रूप से कुकी लोगों द्वारा निवास किए जाने वाले क्षेत्र का अनुमानित विस्तार।

भारत में कुकी लोगों की लगभग पचास जनजातियों को अनुसूचित जनजातियों के रूप में मान्यता दी गई है ,  जो उस विशेष कुकी समुदाय द्वारा बोली जाने वाली बोली के साथ-साथ उनके मूल क्षेत्र पर आधारित है।

म्यांमार के चिन लोग और मिज़ोरम के मिज़ो लोग कुकी की सजातीय जनजातियाँ हैं। सामूहिक रूप से, उन्हें ज़ो लोग कहा जाता है ।

 *मणिपुरी कुकी :* 

ब्रिटिश प्रशासकों द्वारा "नए कुकी" कहे जाने वाले समूह 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान मणिपुर क्षेत्र में चले गए। डब्ल्यू मैकुलॉ ने 1859 में प्रकाशित अपने लेख में और आरबी पेम्बर्टन ने 1835 में प्रकाशित ईस्टर्न फ्रंटियर पर अपनी रिपोर्ट में भी 19वीं शताब्दी की शुरुआत में मणिपुर में कुकियों के बड़े प्रवास का सुझाव दिया है। 

1877-88 की प्रशासन रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 2000 सुक्ते आदिवासियों को मणिपुर के तत्कालीन महाराजा और राजनीतिक एजेंट, कर्नल जॉनस्टोन द्वारा मणिपुर घाटी के दक्षिण पश्चिम में मोइरांग के पास बसाया गया था । 

यूरोप द्वारा लंबे समय तक नजरअंदाज किए गए, कुकी लोगों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मिशनरियों का आगमन और उनके बीच ईसाई धर्म का प्रसार था। मिशनरी गतिविधि के काफी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव थे, जबकि ईसाई धर्म को स्वीकार करने से कुकी लोगों के पारंपरिक धर्म के साथ-साथ कुकी लोगों के पैतृक रीति-रिवाजों और परंपराओं दोनों से प्रस्थान हुआ। अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार ने कुकी लोगों को "आधुनिक युग" से परिचित कराया। विलियम पेटीग्रेव , पहले विदेशी मिशनरी, 6 फरवरी 1894 को मणिपुर आए और अमेरिकी बैपटिस्ट मिशन यूनियन द्वारा प्रायोजित थे । उन्होंने डॉ. क्रोज़ियर के साथ मिलकर मणिपुर के उत्तर और पूर्वोत्तर में एक साथ काम किया। दक्षिण में, वेल्श प्रेस्बिटरी के वॉटकिंस रॉबर्टमिशन ने 1913 में इंडो-बर्मा थाडौ -कुकी पायनियर मिशन का आयोजन किया। व्यापक दायरे के लिए, मिशन का नाम बदलकर नॉर्थ ईस्ट इंडिया जनरल मिशन (एनईआईजीएम) कर दिया गया। 

कुकी लोगों द्वारा ब्रिटिश आधिपत्य का पहला प्रतिरोध 1917-19 का कुकी विद्रोह था, जिसे एंग्लो-कुकी युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, जिसके बाद उनका क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन हो गया था। 1919 में अपनी हार तक, कुकी अपने सरदारों द्वारा शासित एक स्वतंत्र लोग थे। डोबाशी, लेंगजांग कुकी को नागा हिल्स के कुकियों को मणिपुर के कुकी विद्रोह में शामिल होने से रोकने के लिए जिम्मेदार माना गया था। 

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, स्वतंत्रता हासिल करने का अवसर देखकर, कुकी ने शाही जापानी सेना और सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय सेना के साथ लड़ाई लड़ी , लेकिन एक्सिस समूह पर मित्र देशों की सेना की सफलता ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। 

 *इतिहास

 *आरंभिक इतिहास* 

नृवंशविज्ञानी सीए सोपिट ने तर्क दिया कि कुकी और लुशाई कम से कम 11वीं शताब्दी से इरावदी नदी के पश्चिम क्षेत्र में बसे होंगे , इस तथ्य के आधार पर कि उनके पास बौद्ध धर्म का कोई निशान नहीं था जो उस समय तक बर्मा में पहले से ही प्रचलित था।  उन्होंने कुकी-लुशाई जनजातियों को दो व्यापक वर्गों में बांटा: ह्रांगखोल को सह-जनजाति बियाटे के साथ , और चांगसन को सह-जनजाति थाडौ के साथ , उनमें से प्रत्येक को कई उप-जनजातियों के साथ समूहीकृत किया गया।  सोपिट ने सुझाव दिया कि, 16वीं शताब्दी तक ह्रांगखोल और बियाटे लुशाई हिल्स जिले (वर्तमान मिजोरम राज्य) में निवास करते थे।). उन्हें चांगसन द्वारा बाहर धकेल दिया गया, जो थाडौ के साथ पूर्व से चले आए, जिससे उन्हें उत्तरी कछार पहाड़ियों, मणिपुर और त्रिपुरा में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। 19वीं शताब्दी में चांगसन-थडौ गठबंधन को नई जनजातियों द्वारा मजबूर किया गया था, बाद में उस समय "लुशाई" नाम प्राप्त हुआ। 

1881 की जनगणना के अनुसार, कुकी और नागाओं की संख्या उत्तरी कछार हिल्स (वर्तमान असम ) में 20,000, नागा हिल्स (वर्तमान नागालैंड ) में 15,000, मणिपुर में 30,000-40,000 और टिपेरा ( त्रिपुरा ) में 6,000 थी। इसके अलावा, कछार के मैदानी इलाकों में 6,000 लोग थे।  उसी जनगणना के आधार पर मणिपुर के गजेटियर (1886) में कहा गया है कि मणिपुर में लगभग 8,000 "पुराने कुकी" थे, जो पारंपरिक रूप से राज्य में रहते थे, और लगभग 17,000 "नए कुकी" थे जो लुशाई पहाड़ियों से चले गए थे । 19वीं सदी की शुरुआत में दक्षिण. लुशाई हिल्स में कुकियों की भी काफी संख्या थी, जिन्हें 1881 की जनगणना में शामिल नहीं किया गया था।

 *त्रिपुरा* 

31 जनवरी 1860 को, कुकी रियांग ने छगलनैया मैदानों (तब ट्विप्रा साम्राज्य के प्रशासन के तहत ) पर छापा मारने में हिल टिपेरा के कुकियों का नेतृत्व किया, जहां जातीय बंगाली और ब्रिटिश अधिकारी रहते थे ।  कुकियों ने बख्शगंज के इलाके को लूटा और बसंतपुर के कमल पोद्दार की हत्या कर दी। इसके बाद वे पोद्दार की महिलाओं के साथ तब तक छेड़छाड़ करते रहे जब तक गुना गाजी और जकीमल ने कुलपारा गांव में उनके खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ दिया। जबकि कुकियों ने 700 महिलाओं का अपहरण कर लिया, मुंशी अब्दुल अलीब्रिटिश अधिकारियों को अत्याचारों की सूचना दी। 185 ब्रितानियों की हत्या कर दी गई, उनमें से 100 का अपहरण कर लिया गया और कुकी एक या दो दिनों तक मैदानी इलाकों में रहे। अंततः उन्हें दबाने के लिए नोआखाली , टिपेरा (कोमिला) और चटगांव से ब्रिटिश सैनिकों और पुलिसकर्मियों को भेजा गया, लेकिन कुकी पहले ही रियासत के जंगलों में भाग गए थे और वे फिर कभी छगलनैया नहीं लौटे। 

 मणिपुरी कुकीका इतिहास 

ब्रिटिश प्रशासकों द्वारा "नए कुकी" कहे जाने वाले समूह 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान मणिपुर क्षेत्र में चले गए। डब्ल्यू मैकुलॉ ने 1859 में प्रकाशित अपने लेख में और आरबी पेम्बर्टन ने 1835 में प्रकाशित ईस्टर्न फ्रंटियर पर अपनी रिपोर्ट में भी 19वीं शताब्दी की शुरुआत में मणिपुर में कुकियों के बड़े प्रवास का सुझाव दिया है। 

1877-88 की प्रशासन रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 2000 सुक्ते आदिवासियों को मणिपुर के तत्कालीन महाराजा और राजनीतिक एजेंट, कर्नल जॉनस्टोन द्वारा मणिपुर घाटी के दक्षिण पश्चिम में मोइरांग के पास बसाया गया था । 

यूरोप द्वारा लंबे समय तक नजरअंदाज किए गए, कुकी लोगों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मिशनरियों का आगमन और उनके बीच ईसाई धर्म का प्रसार था। मिशनरी गतिविधि के काफी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव थे, जबकि ईसाई धर्म को स्वीकार करने से कुकी लोगों के पारंपरिक धर्म के साथ-साथ कुकी लोगों के पैतृक रीति-रिवाजों और परंपराओं दोनों से प्रस्थान हुआ। अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार ने कुकी लोगों को "आधुनिक युग" से परिचित कराया। विलियम पेटीग्रेव , पहले विदेशी मिशनरी, 6 फरवरी 1894 को मणिपुर आए और अमेरिकी बैपटिस्ट मिशन यूनियन द्वारा प्रायोजित थे । उन्होंने डॉ. क्रोज़ियर के साथ मिलकर मणिपुर के उत्तर और पूर्वोत्तर में एक साथ काम किया। दक्षिण में, वेल्श प्रेस्बिटरी के वॉटकिंस रॉबर्टमिशन ने 1913 में इंडो-बर्मा थाडौ -कुकी पायनियर मिशन का आयोजन किया। व्यापक दायरे के लिए, मिशन का नाम बदलकर नॉर्थ ईस्ट इंडिया जनरल मिशन (एनईआईजीएम) कर दिया गया। 

कुकी लोगों द्वारा ब्रिटिश आधिपत्य का पहला प्रतिरोध 1917-19 का कुकी विद्रोह था, जिसे एंग्लो-कुकी युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, जिसके बाद उनका क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन हो गया था।  1919 में अपनी हार तक, कुकी अपने सरदारों द्वारा शासित एक स्वतंत्र लोग थे। डोबाशी, लेंगजांग कुकी को नागा हिल्स के कुकियों को मणिपुर के कुकी विद्रोह में शामिल होने से रोकने के लिए जिम्मेदार माना गया था। 

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, स्वतंत्रता हासिल करने का अवसर देखकर, कुकी ने शाही जापानी सेना और सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय सेना के साथ लड़ाई लड़ी , लेकिन एक्सिस समूह पर मित्र देशों की सेना की सफलता ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। 

 *संस्कृतियाँ और परंपराएँ*

कुकियों की भूमि में कई रीति-रिवाज और परंपराएं हैं 

 *सॉम

सॉम, लड़कों के लिए एक सामुदायिक केंद्र - सीखने का केंद्र था जिसमें सॉम-उपा (एक बुजुर्ग) पढ़ाते थे, जबकि सॉम-नु लड़कों के बालों में कंघी करना, कपड़े धोना और बिस्तर बनाना जैसे काम का ध्यान रखते थे। सर्वश्रेष्ठ छात्रों को राजा या प्रमुख की सेवा के लिए अनुशंसित किया जाता था, और अंततः वे अपने दरबार में सेमांग और पचोंग (मंत्रियों) या सेना में गैल-लमकाई (नेता, योद्धा) का पद प्राप्त करते थे। 

  *लॉम

लॉम (एक पारंपरिक प्रकार का युवा क्लब) एक संस्था थी जिसमें लड़के और लड़कियाँ व्यक्ति और समुदाय के लाभ के लिए सामाजिक गतिविधियों में संलग्न होते थे। यह एक अन्य शिक्षण संस्थान भी था। प्रत्येक लॉम में एक लॉम-यूपीए (एक वरिष्ठ सदस्य), एक टोलई-पाओ (एक पर्यवेक्षक या अधीक्षक) और एक लॉम-तांग्वो (सहायक अधीक्षक) होता है। पारंपरिक शिक्षा का स्रोत होने के अलावा, लॉम की संस्था ने अपने सदस्यों को तकनीकी और व्यावहारिक ज्ञान के प्रसारण की भी सुविधा प्रदान की, विशेष रूप से खेती , शिकार , मछली पकड़ने और कुंग-काल जैसी खेल गतिविधियों के विशेष तरीकों के संबंध में।(ऊंची कूद, विशेष रूप से पसंदीदा मिथुन के ऊपर ), कांग का'प , कांगचोई का'प (शीर्ष खेल), सुहतुमखाव (धान की भूसी निकालने के लिए भारी लकड़ी के उपकरण का उपयोग करके भाला फेंक) और सोंगसे (शॉट पुट)। 

लॉम एक ऐसा केंद्र भी था जहां युवा कुकी लोगों ने अनुशासन और सामाजिक शिष्टाचार सीखा। फसल के मौसम के बाद, लॉम मीट को लॉम-सेल के साथ मनाया जाता है और, एक स्मरणोत्सव के रूप में, एक स्तंभ खड़ा किया जाता है। यह कार्यक्रम नृत्य और चावल-बीयर पीने के साथ होता है, जो कभी-कभी दिन और रात तक जारी रहता है।

कानून , शासन और सरकार

शासन के संबंध में, सेमांग (कैबिनेट) कुकी गांव समुदाय की वार्षिक बैठक है जो मुखिया के निवास पर आयोजित की जाती है और इनपी (विधानसभा) का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसी सभा में, मुखिया और उनके सेमांग और पचोंग (कैबिनेट सदस्य और इंपी के सहायक) और गांव के सभी घरेलू मुखिया गांव और समुदाय से संबंधित मामलों पर चर्चा करने और उन्हें हल करने के लिए एकत्र होते हैं। 

 धार्मिक मान्यताये 

20वीं सदी की शुरुआत में वेल्श बैपटिस्ट मिशनरियों द्वारा ईसाई धर्म में रूपांतरण से पहले, चिन, कुकी और मिज़ो लोग एनिमिस्ट थे ; उनकी प्रथाओं में अनुष्ठानिक हेडहंटिंग भी शामिल थी ।  ईसाई मिशनरियों ने 19वीं शताब्दी के अंत में मणिपुर में प्रवेश किया लेकिन अभी तक आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पैठ नहीं बनाई थी। 1917-1919 के एंग्लो-कुकी युद्ध में अंग्रेजों की जीत ने कुकियों के मन में ईसाई धर्म अपनाने का द्वार खोल दिया, जिसके बाद अंग्रेजों ने उनका अनुसरण किया। इससे वे तेजी से ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए। ईसाई धर्म में रूपांतरण ने उनकी परंपराओं और रीति-रिवाजों की कीमत पर उनके विचारों, मानसिकता और सामाजिक प्रथाओं को बदल दिया है।  अधिकांश कुकी अब ईसाई हैं , जिनमें से अधिकांश ईसाई हैं प्रोटेस्टेंट संप्रदाय, विशेषकर बैपटिस्ट ।  

20वीं सदी के उत्तरार्ध से, इनमें से कुछ लोगों ने मसीहाई यहूदी धर्म का पालन करना शुरू कर दिया है । बेनी मेनाशे ( हिब्रू : בני מנשה , "सन्स ऑफ मेनासेह ") भारत के उत्तर-पूर्वी सीमावर्ती राज्यों मणिपुर और मिजोरम के भीतर एक छोटा समूह है ; 20वीं सदी के उत्तरार्ध से, वे इज़राइल की खोई हुई जनजातियों में से एक के वंशज होने का दावा करते हैं और उन्होंने यहूदी धर्म की प्रथा को अपना लिया है।  बेनी मेनाशे मिज़ो , कुकी और चिन लोगों से बने हैं , जो सभी तिब्बती-बर्मन भाषा बोलते हैं , और जिनके पूर्वज यहां चले गए थे।पूर्वोत्तर भारत ज्यादातर 17वीं और 18वीं शताब्दी में बर्मा से आया था । बर्मा में इन्हें चिन कहा जाता है । 20वीं सदी के अंत में, एक इजरायली रब्बी ने उनके दावों की जांच करते हुए मेनासेह के वंशज होने के उनके विवरण के आधार पर उनका नाम बेनी मेनाशे रखा । इन दो पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाले 3.7 मिलियन लोगों में से केवल 9,000 लोग बेनी मेनाशे के हैं, कई हज़ार लोग इज़राइल चले गए हैं। कुछ ने भारत से अलग होने के लिए अन्य आंदोलनों का समर्थन किया है।

मुस्लिम-बहुल बंगाल के निकट होने के कारण कुकी मुस्लिम समुदाय भी विकसित हो गया है। ऐसा कहा जाता है कि वे कुकी पुरुषों के वंशज थे जिन्होंने बंगाली मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी, इस रिश्ते के लिए पति का मुस्लिम होना आवश्यक था। वे ज्यादातर उदयपुर के त्रिपुरी शहर के उत्तरी चंद्रपुर गांव के आसपास केंद्रित हैं । उल्लेखनीय कुकी मुसलमानों में चंद्रपुर के खिरोद अली सरदार और सोनामुरा के अली मिया शामिल हैं ।  समुदाय को अन्य कुकियों द्वारा तिरस्कार का शिकार होना पड़ा है। 

 *मणिपुर हिंसा 2023* 

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में 3 मई 2023 को इम्फाल घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतै लोगों और कुकी जनजाति लोगों सहित आसपास की पहाड़ियों के आदिवासी समुदाय के बीच एक नृजातीय झगड़ा छिड़ गया। 4 जुलाई तक, हिंसा में 142 लोग मारे जा चुके हैं, और 300 से अधिक अन्य घायल हो गए हैं। 4 जुलाई तक, लगभग 54,488 लोगों के आंतरिक रूप से विस्थापित होने की सूचना है।

 *कारण : मणिपुर के मैतै और कुकी-ज़ो लोगों के बीच नृजातीय तनाव* 

यह विवाद भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए मैतै लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग से जुड़ा है, जो उन्हें आदिवासी समुदायों के बराबर विशेषाधिकार प्रदान करेगा। अप्रैल में, मणिपुर उच्च न्यायालय के एक फैसले ने राज्य सरकार को इस मुद्दे पर चार सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया। आदिवासी समुदायों ने मैतै की मांग का विरोध किया। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने 3 मई को सभी पहाड़ी जिलों में एकजुटता मार्च निकाला। मार्च के अंत तक, इंफाल घाटी की सीमा से लगे चुड़ाचाँदपुर जिले और उसके आसपास मैतै और कुकी आबादी के बीच झड़पें शुरू हो गईं।

भारतीय सेना ने कानून और व्यवस्था बहाल करने के लिए लगभग 10,000 सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को भेजा। राज्य में इंटरनेट सेवाओं को पांच दिनों की अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया था और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 144 लागू की गई थी, जिससे गैरकानूनी सभा या बड़ी सभाओं पर रोक लगा दी गई थी जिससे शांति भंग होने की संभावना थी। "अत्यधिक मामलों" में कर्फ्यू लागू करने के लिए भारतीय सैनिकों को "देखते ही गोली मारने" के आदेश दिए गए थे।

एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में एक पैनल हिंसा की जांच करेगा, जबकि राज्यपाल और सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह के तहत नागरिक समाज के सदस्यों के साथ एक शांति समिति की स्थापना की जाएगी। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) हिंसा में साजिश से संबंधित छह मामलों की जांच करेगी, ताकि मूल कारणों को उजागर करने के लिए निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जा सके।

19 जुलाई को, एक वीडियो वायरल हुआ - जिसमें दो कुकी महिलाओं को नग्न अवस्था में घुमाते हुए दिखाया गया और स्पष्ट रूप से युवा मैतै पुरुषों द्वारा एक महिला को थप्पड़ मारा गया और उसका यौन उत्पीड़न किया गया। घटना के दो महीने से अधिक समय बाद यह वीडियो सामने आया क्योंकि मणिपुर में इंटरनेट बंद था। पीड़ितों में से एक ने कहा कि उन्हें "पुलिस ने भीड़ के पास छोड़ दिया"। 20 जुलाई को, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इसी तरह की सैकड़ों घटनाओं का हवाला देते हुए राज्य में इंटरनेट प्रतिबंध के अपने फैसले का बचाव किया।

 पृष्ठभूमि

मणिपुर पूर्वोत्तर भारत में एक पहाड़ी राज्य है, जिसकी सीमा पूर्व और दक्षिण में म्यान्मार से लगती है। केंद्रीय क्षेत्र इम्फाल घाटी है जो राज्य के लगभग 10% भूमि क्षेत्र पर कब्जा करता है, जहां मुख्य रूप से मैतै लोग रहते हैं। आसपास की पहाड़ियों में पहाड़ी जनजातियाँ निवास करती हैं, जिन्हें दक्षिणी भाग में कुकी और उत्तरपूर्वी भाग में नागा के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

मैतै, जो बड़े पैमाने पर हिन्दू हैं, लेकिन इसमें मुस्लिम, बौद्ध और मूल सनमाही अनुयायी भी शामिल हैं, आबादी का 53% हिस्सा बनाते हैं। मणिपुर के भूमि सुधार अधिनियम के अनुसार, स्थानीय जिला परिषदों की अनुमति के अलावा उन्हें राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में बसने से रोक दिया गया है। आदिवासी आबादी, जिसमें मुख्य रूप से ईसाई कुकी और नागा शामिल हैं, राज्य की 35 लाख लोगों में से लगभग 40% हैं। वे राज्य के शेष 90% भाग वाले आरक्षित पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते हैं। जनजातीय आबादी को घाटी क्षेत्र में बसने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है।

मणिपुर विधानसभा में राजनीतिक सत्ता पर मैतै का वर्चस्व है। विधानसभा की 60 सीटों में से 19 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) यानी नागा या कुकी के लिए आरक्षित हैं, जबकि 40 अनारक्षित सामान्य निर्वाचन क्षेत्र हैं, जिनमें से 39 सीटें पिछले चुनाव में मैतै उम्मीदवारों ने जीती थीं। जनजातीय समूहों ने शिकायत की है कि सरकारी खर्च मैतै-प्रभुत्व वाली इम्फाल घाटी में अनावश्यक रूप से केंद्रित है।

 2023 निकासी

 ( निकासी का मतलब 1970 के दशक से बसे जनजातीय समूहों हटाने के प्रयास सरकार व्दारा  शुरू हुवा )

2023 में, मणिपुर में राज्य सरकार ने आरक्षित वन क्षेत्रों में बस्तियों से अवैध अप्रवासियों को हटाने के प्रयास शुरू किए। अधिकारियों ने कहा है कि म्यान्मार से अवैध अप्रवासी 1970 के दशक से मणिपुर में बस रहे हैं। जनजातीय समूहों ने कहा है कि अवैध अप्रवास एक बहाना है जिसके तहत मैतै आबादी जनजातीय आबादी को उनकी भूमि से खदेड़ना चाहती है। 

फरवरी 2023 में, भाजपा की राज्य सरकार ने चुड़ाचाँदपुर, कंगपोकपी और तेंगनोउपल जिलों में वनवासियों को अतिक्रमणकारी घोषित करते हुए बेदखली अभियान शुरू किया - इस कदम को आदिवासी विरोधी के रूप में देखा गया।

मार्च में, मणिपुर कैबिनेट ने कुकी नेशनल आर्मी और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी सहित तीन कुकी उग्रवादी समूहों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन समझौते से हटने का फैसला किया, हालांकि केन्द्र सरकार ने इस तरह की वापसी का समर्थन नहीं किया। कई मणिपुरी संगठनों ने भी पहाड़ी क्षेत्रों में असामान्य जनसंख्या वृद्धि की शिकायत करते हुए 1951 को आधार वर्ष मानकर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने के लिए दबाव बनाने के लिए नई दिल्ली में प्रदर्शन किया। पहली हिंसा तब भड़की जब कंगपोकपी जिले में एक झड़प में पांच लोग घायल हो गए, जहां प्रदर्शनकारी "आरक्षित वनों, संरक्षित वनों और वन्यजीव अभयारण्य के नाम पर आदिवासी भूमि के अतिक्रमण" के खिलाफ रैली आयोजित करने के लिए एकत्र हुए थे। जबकि, राज्य कैबिनेट ने कहा कि सरकार "राज्य सरकार के वन संसाधनों की रक्षा के लिए और पोस्ता की खेती को खत्म करने के लिए उठाए गए कदमों" पर कोई समझौता नहीं करेगी। 11 अप्रैल को, इम्फाल के आदिवासी कॉलोनी इलाके में तीन चर्चों को सरकारी भूमि पर "अवैध निर्माण" होने के कारण तोड़ दिया गया था।

20 अप्रैल 2023 को, मणिपुर उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने राज्य सरकार को " अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में शामिल करने के लिए मैतै समुदाय के अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया।" कुकियों को डर था कि एसटी दर्जे से मैतै लोगों को निषिद्ध पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने की इजाजत मिल जाएगी।

आदिवासी समूहों ने राज्य सरकार की कार्रवाइयों के विरोध में 28 अप्रैल को पूर्ण बंद का आह्वान किया, जिस दिन मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को एक ओपन एयर जिम के उद्घाटन के लिए चुराचांदपुर का दौरा करना था। यात्रा से एक दिन पहले, एक भीड़ ने जिम में आग लगा दी और तोड़फोड़ की। 28 अप्रैल को धारा 144 (आपराधिक प्रक्रिया संहिता की) लागू की गई और साथ ही पांच दिन के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया। प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प हुई और भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े गए।

 *अवलोकन*

 दंगा

मैतै और कुकी लोगों के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव के बीच, ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) नामक एक आदिवासी संगठन ने मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध करते हुए 3 मई को "आदिवासी एकजुटता मार्च" नामक एक रैली का आह्वान किया, जो चुड़ाचाँदपुर जिले में हिंसक हो गया। कथित तौर पर, इस रैली में 60,000 से अधिक प्रदर्शनकारियों ने भाग लिया।

3 मई को हुई हिंसा के दौरान गैर-आदिवासी इलाकों में ज्यादातर कुकी आदिवासी आबादी के आवास और चर्चों पर हमला किया गया। पुलिस के अनुसार, इम्फाल में आदिवासी आबादी के कई घरों पर हमला किया गया और 500 रहने वालों को विस्थापित होना पड़ा और उन्हें लाम्फेलपात में शरण लेनी पड़ी। हिंसा से प्रभावित लगभग 1000 मैतैयों को भी क्षेत्र से भागना पड़ा और बिष्णुपुर में शरण लेनी पड़ी। कंगपोकपी शहर में बीस घर जला दिए गए। हिंसा चुड़ाचाँदपुर, ककचिंग, कांचीपुर, सोइबाम लीकाई, टेंग्नौपाल, लैंगोल, कंगपोकपी और मोरे में देखी गई, जबकि ज्यादातर हिंसा यहीं इम्फाल घाटी में केंद्रित थी। जिसके दौरान कई घर, पूजा स्थल और अन्य संपत्तियाँ जल गईं और नष्ट हो गईं।

4 मई को हिंसा के ताज़ा मामले सामने आए। दंगाइयों पर काबू पाने के लिए पुलिस बल को कई राउंड आंसू गैस के गोले दागने पड़े। कुकी विधायक वुंजजागिन वाल्टे (भाजपा), जो चुड़ाचाँदपुर के आदिवासी मुख्यालय के प्रतिनिधि हैं, पर दंगों के दौरान उस समय हमला किया गया जब वह राज्य सचिवालय से लौट रहे थे। 5 मई को उनकी हालत गंभीर बताई गई, जबकि उनके साथ आए एक व्यक्ति की मौत हो गई। सरकार ने कहा कि हिंसा के दौरान लगभग 1700 घर और कई वाहन जला दिए गए।

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने एक बयान में कहा कि कुकी-ज़ो आदिवासी समुदाय की महिलाओं के खिलाफ कंगपोकपी जिले के एक गांव में अत्याचार किया गया था। यह भी आरोप लगाया गया कि महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया।

 *सैन्य तैनाती और निकासी* 

आठ जिलों में कर्फ्यू लगाया गया था, जिसमें गैर-आदिवासी बहुल इम्फाल पश्चिम, ककचिंग, थौबाल, जिरिबाम और बिष्णुपुर जिले, साथ ही आदिवासी बहुल चुड़ाचाँदपुर, कंगपोकपी और तेंगनोउपल जिले शामिल थे।

मणिपुर सरकार ने 4 मई को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी किया। 3 मई के अंत तक, असम राइफल्स और भारतीय सेना की 55 टुकड़ियों को इस क्षेत्र में तैनात किया गया था और 4 मई तक, 9,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया था। 5 मई तक, लगभग 20,000 और 6 मई तक, 23,000 लोगों को सैन्य निगरानी में सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया था। केन्द्र सरकार ने रैपिड एक्शन फोर्स की 5 कंपनियों को इस क्षेत्र में भेजा। लगभग 10,000 सेना, अर्धसैनिक और केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल मणिपुर में तैनात किये गये। 4 मई को, केन्द्र सरकार ने भारतीय संविधान के सुरक्षा प्रावधान, अनुच्छेद 355 को लागू किया और मणिपुर की सुरक्षा स्थिति को अपने हाथ में ले लिया। 14 मई तक, मणिपुर में कुल सैन्य जमावड़ा 126 सेना कॉलम और अर्धसैनिक बलों की 62 कंपनियों का था।

सैनिकों की तैनाती के कारण पहाड़ी-आधारित उग्रवादियों और भारतीय रिजर्व बटालियन के बीच कई झड़पें हुईं, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम पांच उग्रवादी मारे गए। एक अलग मुठभेड़ में चार आतंकवादी मारे गये। 6 मई तक स्थिति कुछ हद तक शांत हो गई थी। पत्रकार मोसेस लियानज़ाचिन के अनुसार, हिंसा के दौरान कम से कम सत्ताईस चर्च नष्ट कर दिए गए या जला दिए गए। मणिपुर सरकार के अनुसार, 9 मई तक मरने वालों की संख्या 60 से अधिक थी। 10 मई को स्थिति को "अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण" बताया गया, कुछ स्थानों पर कर्फ्यू में ढील दी गई, हालांकि मणिपुर के इंफाल पूर्वी जिले में एक घटना में अज्ञात आतंकवादियों ने भारतीय सैनिकों पर गोलीबारी की, जिसमें एक घायल हो गया।

12 मई को, संदिग्ध कुकी उग्रवादियों ने बिष्णुपुर जिले में पुलिसकर्मियों पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें एक अधिकारी की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गए। एक अलग घटना में, चुड़ाचाँदपुर जिले के तोरबुंग में एक सैनिक को चाकू मार दिया गया और मैतै समुदाय के तीन सदस्यों का अपहरण कर लिया गया। एक दिन बाद, मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने हिंसा में मरने वालों की कुल संख्या 70 से अधिक कर दी। इसमें चुड़ाचाँदपुर में अज्ञात कारणों से एक वाहन में मृत पाए गए लोक निर्माण विभाग के तीन मजदूरों की खोज भी शामिल थी। ​​उन्होंने कहा कि शिविरों में रहने वाले आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या काफी कम हो गई है, और लगभग 45,000 लोगों को अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया गया है।

14 मई को, टोरबुंग क्षेत्र में ताजा हिंसा की खबरें सामने आईं, जिसमें अज्ञात आगजनी करने वालों ने घरों और ट्रकों सहित अधिक संपत्ति को आग लगा दी। सीमा सुरक्षा बल की पांच कंपनियां तैनात की गईं। एक अलग घटना में असम राइफल्स के दो जवान घायल हो गए। उसी दिन, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में राज्य के मंत्रियों का एक प्रतिनिधिमंडल स्थिति पर चर्चा करने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के लिए नई दिल्ली रवाना हुआ। इस बिंदु तक हिंसा से हताहतों और संपत्ति की क्षति की रिपोर्ट की गई संख्या 73 मृत, 243 घायल, 1809 घर जलाए गए, 46,145 लोगों को निकाला गया, 26,358 लोगों को 178 राहत शिविरों में ले जाया गया, 3,124 लोगों को निकासी उड़ानों में ले जाया गया, और 385 आपराधिक मामले दर्ज किए गए।

16 मई को इंटरनेट ब्लैकआउट और कर्फ्यू लागू रहा। भोजन की भी कमी बताई गई, दुकानें, स्कूल और कार्यालय बंद हो गए और हजारों लोग शरणार्थी शिविरों में फंस गए। सप्ताहांत में ताज़ा हिंसा के कारण और अधिक विस्थापन हुआ। 17 मई को, इंटरनेट ब्लैकआउट को पांच और दिनों के लिए बढ़ा दिया गया।29 मई को ताज़ा हिंसा हुई जिसमें एक पुलिसकर्मी सहित कम से कम पाँच लोग मारे गए।

26 मई को, मैतै पुनरुत्थानवादी संगठन अरामबाई तेंगगोल ने घोषणा की कि वह पिछले कुछ दिनों में हुए कुछ "अवांछित विकास" का हवाला देते हुए खुद को भंग कर रहा है। 28 मई को, आत्मसमर्पण करने वाले घाटी-आधारित विद्रोही समूहों के उग्रवादियों, जो अब अरामबाई तेंगगोल बैनर के तहत काम कर रहे हैं, और असम राइफल्स की एक इकाई के बीच भीषण गोलीबारी की सूचना मिली थी।

 *दोबारा दंगे* 

14 जून को, नौ मैतै पुरुषों सहित कम से कम 11 लोगों को गोली मार दी गई। इसके अतिरिक्त, ताजा प्रकोप में 14 लोग घायल हो गए। राज्य की राजधानी में डॉक्टरों और अन्य वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारियों के अनुसार, नवीनतम झड़प इतनी भीषण है कि कई शवों की पहचान करना मुश्किल हो गया है।

 *नग्न कुकी महिलाओं का वायरल वीडियो* 

19 जुलाई 2023 को ट्विटर पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें कुकी समुदाय की दो महिलाओं को लगभग 1000 लोगों की भीड़ द्वारा जबरन नग्न अवस्था में घुमाते हुए दिखाया गया। यह घटना 4 मई 2023 की है जो एक मैतै महिला के बलात्कार और हत्या की फर्जी खबर प्रसारित होने के बाद हुई थी। पुलिस की शिकायत के अनुसार, कुकी समुदाय के दो पुरुष और तीन महिलाएं जब हिंसा प्रभावित अपने जिले से भागने की कोशिश कर रहे थे, तो मैतै भीड़ ने उन्हें रोक दिया। दोनों पुरुषों को भीड़ ने मार डाला और महिलाओं को अपने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया, जिसके बाद एक महिला के साथ "क्रूरतापूर्वक सामूहिक बलात्कार" किया गया। एक पीड़ित ने आरोप लगाया कि इसमें पुलिस भी शामिल थी। पुलिस ने इस मामले में पहली गिरफ्तारी वीडियो वायरल होने के बाद की, जो घटना के महीनों बाद हुआ था। सरकार ने कानून और व्यवस्था में व्यवधान की चिंताओं का हवाला देते हुए ट्विटर से वीडियो हटाने को कहा।

वीडियो के प्रसारित होने के कुछ ही घंटों के भीतर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कार्रवाई करने की चेतावनी देते हुए जवाब दिया, अन्यथा अदालत हस्तक्षेप करेगी। इस घटना ने प्रधानमंत्री मोदी को बोलने के लिए प्रेरित किया, जो हिंसा शुरू होने के बाद से लगभग 80 दिनों तक चुप थे, उन्होंने कहा कि वीडियो वायरल होने के बाद उनका दिल "दर्द और गुस्से से भरा" है। कई लोगों ने बताया कि राज्य में इंटरनेट बंद होने से घटना को छुपाने में मदद मिली।

समाचार पोर्टल न्यूज़लॉन्ड्री ने बताया कि राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) को इस घटना की जानकारी थी क्योंकि उन्हें जून के महीने में शिकायत मिली थी, लेकिन एनसीडब्ल्यू ने इसे नजरअंदाज कर दिया।

20 जुलाई, 2023 को मणिपुर पुलिस ने घोषणा की कि अपराध के सिलसिले में 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

 *प्रतिक्रियाएं* 

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा कि दंगे "दो समुदायों के बीच व्याप्त गलतफहमी" के कारण भड़के थे और उन्होंने सामान्य स्थिति बहाल करने की अपील की।

सांसद शशि थरूर ने राष्ट्रपति शासन की मांग की और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह राज्य पर शासन करने में विफल रही है।

बेंगलुरु के मेट्रोपॉलिटन आर्कबिशप पीटर मचाडो ने चिंता व्यक्त की कि ईसाई समुदाय को असुरक्षित महसूस कराया जा रहा है, उन्होंने कहा कि "सत्रह चर्चों को या तो तोड़ दिया गया या अपवित्र कर दिया गया।"

मणिपुर की मूल निवासी ओलंपिक पदक विजेता मैरी कॉम ने ट्वीट कर अपने गृह राज्य के लिए मदद मांगी। केंद्र सरकार के गृह मंत्री अमित शाह ने कर्नाटक चुनाव के लिए अपने प्रचार कार्यक्रम रद्द कर दिए और मणिपुर में स्थिति की निगरानी के लिए एन बीरेन सिंह के साथ बैठकें कीं।

भाजपा के एक विधायक, दिंगांगलुंग गंगमेई ने मैतै लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची में जोड़ने के लिए राज्य सरकार को उच्च न्यायालय की सिफारिश के खिलाफ भारत के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की

12 मई 2023 को, भारतीय जनता पार्टी के आठ सहित सभी 10 कुकी विधायकों ने एक बयान जारी कर हिंसक जातीय झड़पों के मद्देनजर भारत के संविधान के तहत अपने समुदाय को प्रशासित करने के लिए एक अलग निकाय बनाने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि हिंसा को भाजपा द्वारा संचालित राज्य सरकार द्वारा "मौन समर्थन" दिया गया था, और हिंसा के बाद मैतेई-बहुमत प्रशासन के तहत रहना उनके समुदाय के लिए "मृत्यु के समान" होगा। नई दिल्ली में मणिपुर के आदिवासी छात्रों के पांच संगठनों ने भी हिंसा में दो कट्टरपंथी मैतै समूहों, अरामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन की कथित संलिप्तता की जांच की मांग की।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने एक बयान में कहा कि मणिपुर में हिंसा ने "विभिन्न जातीय और स्वदेशी समूहों के बीच अंतर्निहित तनाव को उजागर किया है"। उन्होंने अधिकारियों से "अपने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों के अनुरूप हिंसा के मूल कारणों की जांच और समाधान करने सहित स्थिति पर तुरंत प्रतिक्रिया देने" का आग्रह किया।

29 मई को, कुकी, मिज़ो और ज़ोमी जनजातियों की सैकड़ों महिलाओं ने नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया और मणिपुर में सांप्रदायिक तनाव को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की। महिलाओं ने राष्ट्रीय झंडे लहराए और खुद को आप्रवासी नहीं, बल्कि भारतीय घोषित करने वाले पोस्टर लिए हुए थे, साथ ही आरक्षित वन भूमि से कुकी ग्रामीणों को बेदखल करने से तनाव पैदा करने वाली राज्य सरकार की आलोचना भी की।

30 मई 2023 को, राज्य के ग्यारह अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता खिलाड़ियों ने कहा कि अगर राज्य की क्षेत्रीय अखंडता से समझौता किया गया तो वे अपने पुरस्कार वापस कर देंगे। खिलाड़ियों ने कहा कि अगर सरकार उनकी मांगें पूरी नहीं करती है तो वे भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे और नई प्रतिभाओं को प्रशिक्षित करने में मदद नहीं करेंगे।

1 जुलाई 2023 को, केरल में थालास्सेरी के आर्कबिशप जोसेफ पैम्प्लानी ने कहा कि हिंसा मणिपुर में ईसाई समुदायों को नष्ट करने के लिए मोदी सरकार द्वारा प्रायोजित है।

14 जुलाई 2023 को मिज़ोरम राज्य से भाजपा के उपाध्यक्ष आर. वनरामचुआंगा ने केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों पर चर्चों के विध्वंस का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

20 जुलाई 2023 को, दो महिलाओं को नग्न घुमाने और पुरुषों के एक समूह द्वारा यौन उत्पीड़न के ज़बरदस्त कृत्यों का एक वीडियो वायरल होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी महीनों पुरानी चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा कि इस घटना ने भारत को शर्मसार कर दिया है और किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। विडियो वायरल होने के बाद, अक्षय कुमार, कियारा आडवाणी, सोनू सूद, ऋचा चड्ढा, विवेक अग्निहोत्री, वीर दास, रितेश देशमुख, उर्मिला मातोंडकर, रेणुका शहाणे जैसे कई हस्तियों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा की निंदा की। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, उदयनिधि स्टालिन, पा. रंजीत, अभिनेता कविन, जीवी प्रकाश और कमल हासन ने भी घटना को निंदनीय बताया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, महुआ मोइत्र और प्रियंका गांधी ने घटना को "घिनना" और "दिल दहला देने वाला" कहा।

मणिपुर हिंसा का कारण क्या है?

मणिपुर में 3 मई से हिंसा की शुरुआत हो चुकी थी। मणिपुर में तीन मई को मैतेई (घाटी बहुल समुदाय) और कुकी जनजाति (पहाड़ी बहुल समुदाय) के बीच हिंसा शुरू हुई थी। दरअसल, मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी की तरह राज्य में शेड्यूल ट्राइब (ST) का दर्जा दिया जाए।

और कुकी हैं. मैतई ज्यादातर हिंदू हैं और वह ओबीसी कैटेगरी में आते हैं. राज्य में मैतई लोगों की जनसंख्या भी ज्यादा है. राज्य में नागा और कुकी ज्यादातर ईसाई हैं और ये दोनों अनुसूचित जनजाति में आते हैं.

राज्य में मैतेई की आबादी करीब 60% है और ये समुदाय इंफाल घाटी में रहता है. राज्य के कुल 10% भूभाग में मैतेई समुदाय रहता है और बाकी का जो ये 90 % हिस्सा है, वो पहाड़ी है. यहां पर कुकी और नागा समुदाय को मिलाकर राज्य की जनसंख्या के करीब 40% लोग बसे हुए हैं.

पहाड़ में नागा और कुकी को मिलाकर 30 से ज्यादा छोटी-बड़ी जनजातियां हैं. ये अनुसूचित जनजाति में आती है. इनके पास कई सुविधाएं हैं और पहाडी इलाकों में सिर्फ यही रह सकते हैं. मैतेई समुदाय इसका विरोध करता है. वो कहते हैं कि हमें भी एसटी का दर्जा मिलना चाहिए क्योंकि उनके पास रहने के लिए रहने को जमीन कम है. अगर एसटी का दर्जा मिलेगा. तो वो पहाड़ों पर शिफ्ट हो सकेंगे. 

कुकी समुदाय पहाड़ पर नहीं चाहता है मैतेई का दखल यही विवाद की जड़ है. क्योंकि पहाड़ी इलाको में रहने वालों को लगता है कि अगर मैतई को एसटी का दर्जा मिलता है, तो वो ऊपरी इलाकों में आएंगे और उनके अधिकार लेंगे. विवाद पहले भी था. लेकिन इस बार मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा. कि मैतेई समुदाय को शेड्यूल ट्राइब वाला स्टेटस देने पर विचार होना चाहिए. बस इसी फैसले के बाद से राज्य में हिंसा जारी है. 

इसबार क्यों हो रहा है मणिपुर में इतना बवाल?

मणिपुर मे विवाद पहिले भी था पर वो इतना रौद्ररूप उसने कभी नही लिया था तो फिर आज एसा क्या हो गया की बवाल रूकनेका नाम नही लेता ? तो इसका उत्तर है मणिपुर और भारत सरकार मे बैठे भाजपा की विचारधारा जो सिर्फ मैतई  हिंदू का हित चाहती है और आदिवासी कुकी ,नागा, इत्यादी ख्रिचन /इसाई बने जनजातियोंकों 1970 मे बसे अवैध प्रवासियोंके नाम पे पहाड से खदेड़ना चाहती है और 2023 मे उसने ये काम शुरू भी कर दिया है जिसे 2023 की निकासी के नाम से जाना जाता है इसी निकासीसे आदीवासीयोंमे असुरक्षा की भावना निर्माण हुई और उसने दंगे का रूप लेलीयाी कोर्ट  के मैतई को अदिम जाती का दर्जा देने के बात से बवाल और भी बड गया 3 मई को कुकीजने इसके विरोध मे मोर्चा निकाला और मैतेई लोग भी कुकीज के विरोध मे भडंक गये हमारे हित के आड ये अदिवासी इसाई आरहे है इस भावना से मैतई भी दंगों मे उतर आये और मणिपुर बुरीतऱ्हा जलने लगा सरकारे देखती रह गयी पर आजतक किसी को रोक नही पाई या फिर सरकार इस दंगे को रोकना ही नही चाहती ? ये सवाल अपने आप मे बडा है ।

क्यों की 2023 के शुरूवात से ही 1970 मे बसे अवैध प्रवासीयों के नाम पे सेकडो कुकी और इतर अदिवासीयों उनके निवास से विस्थापित कर दिया गया है और दंगो के बाद भी लष्कर के मदतसे सुरक्षित ठिकानों के नाम पे हजारो आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है एसा उनका आरोप है इसी कारण फिर से दंगे शुरू हो गये जिसकी भीषणता आज पुरा देश देख रहा है।

केंद्र सरकार ने अभी तक क्या किया?

लड़ाई एक घर (राज्य) में दो भाईयों (मैतेई-कुकी) की है तो इसे घरवालों को ही सुलझाना चाहिए. घर मणिपुर है और यहां गार्जियन के रोल में केंद्र सरकार है. सरकार ने अभी तक क्या किया. ये भी आपको बताते हैं. सरकार ने हालात काबू करने के लिए सेना और असम राइफल्स को डिप्लॉय किया. 40 IPS अधिकारियों के नेतृत्व में 20 मेडिकल टीमें भेजी गईं हैं, और भारतीय वायु सेना को भी सर्विस में लगाया गया.

जहां हिंसा हुई वहां कर्फ्यू लगाया. सोशल मीडिया पर फर्जी और गलत जानकारी पोस्ट ना हो. हिंसा ना भड़के. इसलिए इंटरनेट पर बैन लगाया. आगजनी, लूटपाट, हिंसा करनेवालों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं. खुद गृहमंत्री अमित शाह ने मणिपुर का दौरा किया. हिंसा भमें शामिल लोगों से हथियार डालने की अपील भी की है. पर इस सब का कुछ असर नही हुवा मणिपुर में पिछले 83 दिनों से हिंसा जारी है। इस बीच, कुछ ऐसी वीडियो सामने आए हैं, जिसने पूरे देश को दहला दिया है।ये वीडियो पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी है। 

एसेमे आज से संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ। इसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से बातचीत की। उन्होंने मणिपुर हिंसा का जिक्र करते हुए आक्रोश व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी : , 'मेरा हृदय पीड़ा से भरा है, क्रोध से भरा है। मणिपुर की जो घटना सामने आई है, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली घटना है। पाप करने वाले, गुनाह करने वाले, कितने हैं-कौन हैं, यह अपनी जगह है, लेकिन बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है। सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे माताओं-बहनों की रक्षा करने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं। अपने राज्यों में कानून व्यवस्था को और मजबूत करें। घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की हो या मणिपुर की हो, हम राजनीतिक विवाद से ऊपर उठकर कानून व्यवस्था और नारी के सम्मान का ध्यान रखें। किसी भी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। मणिपुर की इन बेटियों के साथ जो हुआ है, उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता।' 

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ : 'हम सरकार को कार्रवाई करने के लिए थोड़ा समय देंगे नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। हमारा विचार है कि अदालत को सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि अपराधियों पर हिंसा के लिए मामला दर्ज किया जा सके। मीडिया में जो दिखाया गया है और जो दृश्य सामने आए हैं, वे घोर संवैधानिक उल्लंघन को दर्शाते हैं और महिलाओं को हिंसा के साधन के रूप में इस्तेमाल करके मानव जीवन का उल्लंघन करना संवैधानिक लोकतंत्र के खिलाफ है।

आज के हालात 

मणिपुर के चुराचांदपुर के कंगबई इलाके में आज रवीवार 23 जुलैई को भी फायरिंग और आगजनी की गई है. इस घटना के वक्त इंडिया टुडे की टीम चुराचांदपुर के फोर जोन में ही थी. असम ऱाइफल्स ने टीम को सुरक्षित बाहर निकाला यानी मणिपुर के हालात आज भी अच्छे नही है । 

सौ से ज़्यादा लोगों की मौत, 50 हज़ार से ज़्यादा विस्थापित, लोगों के घर जलाए गए, दुकानें जलाई गईं, चर्च जलाए गए.

गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर का दौरा किया. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को मैतेई और कुकी समुदाय के बीच खाई पाटने की ज़िम्मेदारी दी गई, लेकिन मणिपुर में हिंसा लगातार जारी है.

सरकार के क़दम नाकाफ़ी?

गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर दौरे के समय सभी पक्षों से बात कर 15 दिनों के भीतर शांति बहाल करने की अपील की थी. लेकिन हालात और ख़राब ही होते जा रहे हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि हालात को ठीक करने के लिए जिस तरह के क़दम उठाए जाने की ज़रूरत थी वो क़दम ना केंद्र सरकार ने उठाए ना ही राज्य सरकार ने.

नांबोल के सनोई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर निन्गोमबाम श्रीमा बीबीसी से बात करते हुए कहती हैं, “सरकार ने लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया है. कुकी और मैतेई दोनों ही समुदाय के लोगों को लग रहा है कि उन्हें अपनी सुरक्षा ख़ुद करनी पड़ेगी क्योंकि सरकार उनके लिए कुछ कर ही नहीं रही है. और इसी वजह से हालात बिगड़ते चले गए क्योंकि लोग हिंसा से निपटने के लिए ख़ुद हिंसा का ही सहारा ले रहे हैं.”

विशेषज्ञ बताते हैं कि दोनों समुदायों के बीच लंबे समय से मतभेद होने के बावजूद राज्य में कुकी और मैतेई समुदाय शांतिपूर्वक रहते चले आए हैं.

यहां तक कि दोनों के बीच व्यापारिक संबंध भी रहे हैं. लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि उनका एक दूसरे से भरोसा ही उठ गया है.

मणिपुर में अब कुकी बहुल इलाके में कोई मैतेई क़दम रखने की हिम्मत भी नहीं कर सकता.

वहीं दूसरी ओर मैतेई लोगों के इलाक़े में जाने का जोख़िम कोई कुकी नहीं लेना चाहेगा.

निन्गोमबाम श्रीमा कहती हैं कि जब तक केंद्र सरकार बहुत मज़बूती से दख़ल नहीं देती है और राज्य सरकार आम लोगों की सुरक्षा का बंदोबस्त नहीं करती है, तब तक हिंसा का ये दौर नहीं थमेगा.

राज्य में काम कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता के. ओनील कहते हैं कि राज्य में जारी हिंसा से निपटने में जो गंभीरता केंद्र सरकार को दिखानी चाहिए थी वो उसने दिखाई नहीं. गृहमंत्री अमित शाह का मणिपुर दौरा भी महज़ खानापूर्ति था. उन्होंने किन्हीं ठोस उपायों की बात की ही नहीं.

शांति समिति

मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके की अध्यक्षता में केंद्र सरकार ने 51 लोगों की जो शांति कमेटी बनाई है उसको लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं.

एक तरफ कुकी जनजाति की सर्वोच्च संस्था कुकी इंपी ने शांति समिति के गठन को खारिज किया है. वहीं, मैतेई समुदाय का नेतृत्व कर रही कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी ने इस शांति कमेटी में शामिल नहीं होने की घोषणा की है.

के. ओनील कहते हैं, “हालात सुधारने के मक़सद से सरकार ने जिस शांति समिति का गठन किया उसमें उन्होंने अपनी मर्ज़ी से लोगों को शामिल किया. इस समिति में एक भी ऐसा शख़्स नहीं है जो राज्य के, इस इलाक़े के हालात का विशेषज्ञ हो. ऐसे लोग जो राज्य को ठीक से समझते हों उन्हें समिति में होना चाहिए था. तो इसी बात से सरकार के इरादे समझ में आ जाते हैं.”

पूर्वोत्तर को लेकर दावे और हक़ीक़त

उत्तर पूर्व के राज्यों में से त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, असम और मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. जबकि बाक़ी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सत्ताधारी गठबंधन में शामिल है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबसे सत्ता में आए हैं तब से वो दावा करते आए हैं कि पूर्वोत्तर भारत के साथ होते आ रहे भेदभाव को दूर करेंगे.

उन्होंने दावा किया कि कभी हिंसा और अशांति के लिए जाने जाने वाले पूर्वोत्तर में अब चारों तरफ़ विकास हो रहा है.

लेकिन असल हालात कुछ और ही हैं. मणिपुर के अलावा भी असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिज़ोरम में हिंसा लगातार होती रही है.

अगस्त, 2021 में असम-मिज़ोरम सीमा पर हुई हिंसा में असम पुलिस के पांच जवान मारे गए थे. अक्टूबर-नवंबर 2021 में त्रिपुरा में हिंदू-मुसलमान हिंसा भड़क गई थी.

नवंबर 2022 में असम-मेघालय सीमा पर हिंसा भड़क उठी थी जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी.

तमाम दावों के बावजूद क्या मोदी सरकार पूर्वोत्तर में पूरी तरह से शांति स्थापित करने में विफल रही है.

ये पूछे जाने पर के ओनील कहते हैं, “पूर्वोत्तर में जो अलग अलग जातीय और जनजातीय समूह रहते हैं उनकी भावनाओं को भारतीय जनता पार्टी नहीं समझती. यहां पर उसका हिंदुत्व का एजेंडा नहीं चलेगा."

“पूर्वोत्तर के लोगों की इच्छा का सम्मान ना करते हुए अगर आप अपना एजेंडा यूं ही थोपते रहेंगे तो कैसे यहां की समस्याएं सुलझाएंगे.”

राज्य में हिंसा की वजह से आम लोगों को सुरक्षा संबंधी दिक़्क़तों के साथ महंगाई से भी जूझना पड़ रहा है. खाने-पीने की चीज़ों की क़ीमत में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हो गया है. लोगों को दवाइयां मिलने में परेशानी हो रही है. चावल कई जगहों पर दो सौ रुपए किलो तक मिल रहा है.

मणिपुर मे हालात सामान्य कैसे होंगे ?

राज्य में बीरेन सरकार के लगातार कायम रहने से दोनों ही पक्षों की भावनाएं भड़की हुई हैं. कुकी इसे बहुसंख्यकवादी एजेंडा बढ़ाने वाली पक्षपाती सरकार के रूप में देखते हैं, जबकि मैतेई इसे उनकी रक्षा करने में अक्षम मानते हैं.

80 के दशक की शुरुआत में पंजाब से जुड़े घटनाक्रम की. और इसे हमने उदाहरणों की सूची में सबसे आखिर में इसलिए रखा क्योंकि यह आगे का रास्ता अपनाने में निर्णायक साबित हो सकता है. वर्ष 1981-83 के बीच भिंडरांवाले की सक्रियता के साथ आतंकी हत्याओं का पहला दौर शुरू हो चुका था. केंद्र और राज्य की सत्ता में कांग्रेस पार्टी की वापसी हुई थी. दरबारा सिंह इसके मुख्यमंत्री थे.

हिंदुओं के नाम पर जब प्रमुख अखबार के मालिक-संपादक (लाला जगत नारायण, पंजाब केसरी) और एक पुलिस डीआईजी (ए.एस. अटवाल) की हत्या ने देश को हिलाकर रख दिया, तब श्रीमती गांधी ने क्या किया? उन्होंने अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर अपनी ही पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लगा दिया. हालांकि, इससे पंजाब की चुनौतियां खत्म नहीं हुईं. लेकिन इसने खतरा और शासन की नाकामी स्वीकारने की इच्छाशक्ति का संकेत जरूर दिया.

आज अगर हर नए संकट, किसी गलत कदम या किसी भी तरह के झटके का जवाब यही है कि ऐसा पहले भी हुआ है, खासकर कांग्रेस शासन के दौरान, तो अतीत में मिसाल बने कदमों पर मंथन करना भी उपयोगी साबित हो सकता है. यह नई दिल्ली में बैठी कोई कमजोर सरकार नहीं थी जो राजधानी से महज 220 किमी दूर अपेक्षाकृत एक बड़े राज्य में अपनी ही पूर्ण बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 356 का सहारा लेने में नहीं हिचकिचाई.

यह आपातकाल के बाद अपनी शक्तियों के चरम पर पहुंची इंदिरा गांधी थीं, जिन्हें आज भाजपा की तुलना में ज्यादा बड़ा बहुमत हासिल था.

हम समझ सकते हैं कि यह सरकार श्रीमती गांधी के नक्शेकदम पर चलने से क्यों कतरा रही है. लेकिन, आप किसी भी नजरिये से स्थिति को पूरी ईमानदारी से देखें तो पाएंगे कि मौजूदा समय में राज्य सरकार समस्या की वजह है, समाधान नहीं.

बीरेन सिंह सरकार को किसी भी पक्ष का भरोसा हासिल नहीं है, इसके शीर्ष पदाधिकारी पूरे परिदृश्य से नदारत हैं, और इसकी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी—कानून और व्यवस्था बनाए रखने—को ‘सलाहकार’ और बाहर से भेजे गए अधिकारी निभा रहे है. यही नहीं, इसका सत्ता में बने रहना दोनों ही पक्षों की भावनाएं भड़का रहा है. कुकी इसे बहुसंख्यकवादी एजेंडा बढ़ाने वाली पक्षपाती सरकार के रूप में देखते हैं, जबकि मैतेई समुदाय इसे व्यापक स्तर पर उनका चुनावी समर्थन हासिल करने के बावजूद उनकी रक्षा करने में अक्षम मानता है.

एसे मे मोदी सरकार को सब से पहिले तो राज्य सरकार को बरखास्त कर के राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहीये सकती के सात दंगाईयोंसे निपट कर पहिले शांती प्रस्थापित करनी होगी फिर अपसी  विवाद सुलझा के भाईचारे को बडावा देने के लिये ठोस कदम उठाने होंगे क्यू की कोई भी सरकार देश से उपर नही है और मोदीजी सिर्फ भाजपा के नही तो देश के प्रधानमंत्री है।और मणिपुर हिंसा सामान्य बात नही है ये संकट असाधारण रूप से अभूतपूर्व है जिस की अन्य घटनावोंसे तुलना नही होसकती ।  

हालांकि, ऐसी कई बातें हैं जो मणिपुर के मौजूदा संकट को अभूतपूर्व बनाती हैं. लेकिन हम यहां इनमें से सिर्फ तीन का जिक्र करते हैं:-

1) धर्म, जातीयता या भाषा के आधार पर एक समुदाय की तरफ से दूसरे को निशाना बनाए जाने के असंख्य उदाहरण हमारे सामने हैं. हमने दो समुदायों के बीच लड़ाई को चरम पर पहुंचते भी देखा है. लेकिन हमारे इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि हमारे दो समुदाय एक-दूसरे के खिलाफ बड़ी संख्या में स्वचालित हथियार इस्तेमाल कर रहे हैं. इसमें लंबी दूरी की स्नाइपर राइफलें भी शामिल हैं जो हमारे अधिकांश वर्दीधारी सुरक्षा बलों तक को हासिल नहीं हैं. इसे एक तरह से गृहयुद्ध कहा जा सकता है.

2) यह पहली बार है जब लगातार छह सप्ताह से अराजकता का आलम है, और सरकार कोई निर्णायक राजनीतिक कदम उठाने में नाकाम रही है. इस क्षेत्र में अधिक बल भेजना जारी रखना, वार्ताकारों की नियुक्ति और शांति समिति की स्थापना करना, मौजूदा हालात को सुधारने के लिहाज से पुख्ता कदम साबित नहीं हो सकते. समस्या उससे कहीं ज्यादा गहरी है.

3) किसी एक पीड़ित समुदाय के पलायन के अनगिनत मामले सामने आए हैं. मिसाल के तौर पर कश्मीरी पंडितों को ही ले लीजिए. मणिपुर में संघर्षरत दोनों ही समुदाय पलायन कर रहे हैं. यानी मूलत: जो कोई भी मणिपुर छोड़ सकता है, उसे छोड़कर जा रहा है. यह एक नई बात है.

संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र को यह शक्ति और जिम्मेदारी दोनों प्रदत्त की गई हैं कि प्रत्येक राज्य को बाहरी और आंतरिक खतरों से बचाए. जाहिर है, अगर केंद्र की हरसंभव मदद के बावजूद कोई राज्य सरकार नाकाम रहती है, तो उसे हटाया जाना चाहिए. इसमें शर्म जैसी कोई बात नहीं है. याद रखिए, इंदिरा गांधी ने ऐसा किया भी था.

इससे एक बिखरे राज्य के हालात तत्काल तो नहीं सुधरेंगे. इसमें कुछ ज्यादा समय लग सकता है. लेकिन एक शुरुआत हो सकती है और दोनों ही पक्ष इसे इसी रूप में देखेंगे. निश्चित तौर पर, इससे दोनों पक्षों की इस साझा भावना में भी बदलाव आएगा, कि हमारा मणिपुर जल रहा है, और किसी को इसकी परवाह तक नहीं है.

✍️ *लेखीका : डाॅ रेश्मा पाटील* 

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🗓️ *तारीख : 21 / 7 / 2022* 

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