क्या इस्लाम वैदिक धर्म का ही एक स्वरूप है?

 क्या इस्लाम वैदिक धर्म का ही एक स्वरूप है?





इस्लाम और वैदिक धर्म मे बहोतसी बाते समान है। इस्लाम का मूलमंत्र है ला इलाह इल अल्लाह यानी नही कोई माबूद अल्लाह के सिवा माबूद का मतलब होता है इबादत्त के काबील तो अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई इबादत के काबिल नही ये इस्लाम की मान्यता है पर अल्लाह ने अपने जो नबी और रसूल दूनया मे भेजे है वो सब आदर सम्मान के हक्कदार है और कोई भी उनका अनादर नही कर सकता वो खूदा ना सही उसका अक्स जरूर होते है और सृष्टी का हर जर्रा खूदाने अपने नूर से बनाया है इसलिये उसमे एब निकालना या उसका तिरस्कार करना इस्लाम मे मान्य नही इस्लाम की यही मान्यताये हमे वैदिक सनातन धर्म और दुनया के अन्य धर्मो में भी दिखाई देती है जैसे की ख्रचन , यहुदी , यजिदी, जैन, बोध्द, शिख आधी धर्मो मे भी यही सब बाते अलग तरीके और अलग भाषांवोंमे वर्णित है । 

अव्वल अल्ला नूर वो पाया कुदरत के सब बंदे ।

एक नूूर से  सब जग उपजिया कोन भले कोन मंदे ।।

हालांकि मैं स्वयं को इतने महत्वपूर्ण विषय पर लिखने के योग्य नहीं समझती हूँ लेकिन फिर भी जो थोड़ी बहुत जानकारी है, उसको  शेयर करना चाहती हूँ!! वेद भी "एको हम द्वितीयो ना सी " यानी मै एक हू और मेरे जैसा कोई दुसरा नही है यही प्रमुख वाक्य है ला इलाह इल अल्लाह और एको हम द्वितीयो ना सी  इन दोनो वाक्योंका मतलब तो लगभग एक जैसा ही सिर्फ भाषाये अलग अलग है । वेदो मे वर्णन है की मै एक हू और आनेक होना चाहता हू इस इच्छा से परमात्माने सृष्टी निर्माण की अपने ही तेज से और इसका संचलन करने को अवतार लिये जो परमात्मा का ही स्वरूप होते है पर पुर्ण परमात्मा नही तो उसकी कलावोंसे प्रकट होते है वैसे तो पूरी सृष्टी ही परमात्मा के कलावोंसे बनी है। जैसे पेड पौधो मे परमात्मा की एक कला होती है तो पशू , पक्षी, जलचर आधी जीव परमात्मा की दो से चार कलाये होती है साधारन मानव मे परमात्मा की पाच कला यें होती है और सुसंस्कृत और सभ्येतावाले मनाव मे शे कलाये होती है परमात्मा की सात से आठ कलावोंसे युक्त मानव महामानव और संत होते है जो पृथ्वीपर कभी कभार दिखाई देते है मनुष्य की देह आठ कलावोंसे अधीक का तेज सहन नही कर सकती 10 से 16 कला युक्त इश्वर के अवतार होते है । यही वेद का मानना है ।   

इस्लाम भी मानता है की दूनया मे जमीन के अलग अलग जर्रोपर अलग अलग इबादत्त के तरीके दिये गये और अलग अलग वक्त मे अलग अलग रहेनूमा आये अतह इबादत के तरीको और पैगंबरो के नामो पर झगडा नही करना चाहीये । इस्लाम के मुताबीक एक लाख चैबीस हजार से से एक लाख पचींस हजार नबी और रसूल इस दूनयामे आये है ।

पवित्र कुरान अध्याय 40 सूरह गफिर श्लोक 78 में अल्लाह कहते हैं:

ऐ पैग़म्बर, हमने तुमसे पहले बहुत से रसूल भेजे हैं। उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनकी कहानियाँ हमने तुमसे संबंधित की हैं, और कुछ की जो हमने संबंधित नहीं की हैं।

यानी कुछ के नाम और काम के बारे मे हम ने आपको बताये है और बहोत सोंके नाम और काम हमने आपको नही बताये है। इसका मतलब साफ है की अल्लाह ने जीतने नाम पैगंबर को बताये वो उनसे संबंधीत थे और उतनो का ही उल्लेख हमे करान और हदीसों मे मीलता है जीनका उल्लेख कुरान या हदीसो मे नही है एसे भी अनेक रसूल और नबी दूनया मे है और इस्लाम के ही मुताबिक आप उनका अनादर नही कर सकते । सब से पहीले तो मूसलमानों को यह समझने की जरूरत है।
जैसा कि मैंने उपरोक्त आयत में कहा है, पवित्र कुरान में केवल कुछ पैगंबरों के नाम का उल्लेख है। केवल 25 पैगंबरों के नामों का उल्लेख किया गया है और वे हैं:

एडम/आदम
नूह 
इदरीस 
हुड 
सालिह 
इब्राहिम /अब्राहम
लूत 
इस्माइल 
अल-यासा 
ज़ुल्किफ़्ल 
इलियास 
अय्यूब 
यूनुस 
इशाक 
याकूब 
यूसुफ 
शुएब 
मूसा 
हारून 
दाऊद 
सुलेमान 
जकारिया 
याह्या 
ईसा / ईसा मसीह  
मुहम्मद पैगंबर 

अब एक लाख पंचीस हजार मे से केवल 25 नाम ही बताये गये है तो सोचो की गैब यानी बीना मालूमात के कीतने है ? या एसे कहो की सच्चाई यह है कि अल्लाह ही जानता है कि उसने अपने दूत, पैगंबर मोहम्मद (SAW) को अपने संदेश के साथ भेजने से पहले मानव जाति के मार्गदर्शन के लिए पृथ्वी पर कहाँ और कितने पैगंबर भेजे हैं।
इस्लाम की बात करे तो इस्लाम में जीन 25 नमोका जिक्र है उनमें से प्रत्येक नबी ने एक ही मुख्य इस्लामी मान्यताओं, ईश्वर की एकता, उस एक ईश्वर की पूजा, मूर्तिपूजा और पाप से बचने, और पुनरुत्थान के दिन या न्याय के दिन और मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास का प्रचार किया है। उन मे से किसी ने भी अल्लाह के नाम पे दुसरे लोगों को सताने की बात नही कही है और ना ही कीसीसे नफरत करना सीखाया है।
वैदिक सनातन परंपरा मे तो अनगीनत साधू संत महात्मावों का उल्लेख है । अलग अलग दर्शन है ज्ञान और तत्वज्ञान की लंबी श्रृखींला है । इश्वर की अवतार संकल्पना है। वेद , उपनिषद, अरण्यक , महाकाव्य , पुराण इनमे इतना ज्ञान संचयीत है की उस का अध्ययन करने को पूरी जिंदगी कम पड जायेंगी इन सब का सार जानना है तो दो महाकाव्य रामायण और महाभारत सात मे भागवत पुराण और सब से अहम श्रीमत भगवत गीता का अध्ययन बहोत जरूरी है। इनमे से जो ज्ञान निकल कर आता है वो इस्लाम की सारी मान्यतांवो से अपनेआप ही मेल खाता है बस मूर्तिपूजा ही बहस का मामला रह जाता है कींव कींव की इश्वर की सगूण साकार उपसना और निर्गूण निराकार उपासना मे हमेशा से बहस रही है गीता मे दोनो का अपना अपना महत्व बताया गया है और साकर उपसनासे निराकार उपसाना अधीक श्रेष्ट पर जटील बतायी गयी है तो इस्लाम मे सकार उपसना को कोई स्थान ना देते हूये केवल निराकार उपासना को ही बताया गया है पर ऐ कोई इतना बडा मुद्दा नही है की जिसके लिये इन्सना जंगे लढे और एक दुसरे का खून बहाये एक दुसरे से नफरत करे । अब मानव को ये समझने की जरूरत है की ग्यान की प्राप्ती के लिये झगडा जरूरी नही है बल की अध्ययन जरूरी है। मोहम्मद पैगंबर साहब ने कहा है की "इल्म हासील करने के लिये दुनया के एक शोर से दुसरी शोर तक जाना पडे तो जावो पर इल्म हासील करो " यानी ग्यान की प्राप्ती के लिये दुनया के एक कोने से दुसरे कोने तक ही कींव ना जाना पडे पर ग्यान हासील करो इसीमे मानव की भलाई है बिना ग्यान के या फिर आधे अधूरे ग्यान से एक दुसरे से उलझ के खूद का और सृष्टी का नूकसान करने तो अच्छा है की ग्यान की खोज की जाये या जो हासील है उसमे सहिष्णूता रखकर भाईचारे से जिंदगी बीतायी जाये । आज कल तो ग्यान की खोज करना थोडा सरल भी हो गया है हर एक किसम का ग्यान मोबाईल और नेट के जरीये जाना जा सकता है तो आवो हम भी कूछ मानव सभ्यता की मान्यतावों को जानने समझने की कोशीश करते है ताकी आज की परीस्थिती मे हर मानव के मन मे उठे विचारोंका गूबार कूछ कम हो सके ।

भारतवर्ष इस्लाम और मुसलमानो के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है!! पैग़ंबर मोहम्मद साहब के खलीफा हज़रत अली के अनुसार अल्लाह ने नबी आदम को दुनिया मे जिस जगह भेजा वह जगह सारंदीप थी!! यह जगह अब लंका मे है!! लंका से नबी आदम भारत होते हुए जेद्दाह (सऊदी अरब) गए और वहाँ हज़रत हव्वा को लेकर वापस भारत आए और यहीं रहने लगे, और यहीं उनका वंश बढ़ा,  अयोध्या मे हज़रत शीश कि मज़ार जो हज़रत आदम के तीसरे बेटे थे  इसका सुबूत है!! अब सवाल उठता है कि :

1) जब इस्लाम यह मानता है कि दुनिया मे सबसे पहले मनुष्य आदम थे और आदम अल्लाह के नबी और खलीफा थे तो यह बात खुद ही साबित हो जाती है कि जिस प्रकार सबसे पहले व्यक्ति भारत मे बसा उस ही तरह सब से पहला धर्म , सबसे पहला नबी और सबसे पहला ईश्वरीय आदेश भी भारत मे आया और यहीं से वह धर्म / लोग और संस्कृति पूरे विश्व मे फैली !! अब इस विश्व के पहले धर्म को आप जो नाम दे, चाहे वैदिक धर्म, सनातन परंपरा कहो चाहे दीने इस्लाम  !!

2) हज़रत आदम से यह दीन (वैदिक धर्म / दीने इस्लाम) पूरी दुनिया मे फैला, और जब जब इस में  बिगाड़ पैदा हुआ और लोग अधर्मी होने लगे, अल्लाह ने अपने दूत (पैग़ंबर या अवतार) भेजे उनके मार्ग दर्शन के लिए यह बात कुरान मे स्पष्ट है,, इस ही तरह गीता मे भी कहा गया है कि धर्म की रक्षा के लिए अवतार आते है !! क्या ये दोनों इस ओर इशारा नहीं करते है कि इनका स्रोत एक ही है !!

3) कुरान मे अल्लाह ने कहा है कि हर क़ौम कि तरफ पैग़ंबर भेजे गए है, तो क्या मुमकिन नहीं है कि श्री कृष्ण, गौतम बुध आदि भी भेजे गए पैग़ंबर हो, इस्लाम के अनुसार 125,000 (कुछ कम या कुछ ज़्यादा ) पैग़ंबर धरती पर आए है और सबको मानना , सब की इज्ज़त करना फर्ज़ है !!

4) ये भी कहा है की कुछ के नाम और काम के बारे मे हम ने आपको बताये है और बहोत सोंके नाम और काम हमने आपको नही बताये है। 

पवित्र कुरान अध्याय 40 सूरह गफिर श्लोक 78 में अल्लाह कहते हैं:

ऐ पैग़म्बर, हमने तुमसे पहले बहुत से रसूल भेजे हैं। उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनकी कहानियाँ हमने तुमसे संबंधित की हैं, और कुछ की जो हमने संबंधित नहीं की हैं।

इसका विस्तार से इस लेख मे उपर उल्लेख किया है।

5) कुरान और पैग़ंबर मुहम्मद साहब से साफ कहा है कि इस्लाम कोई नया दीन नहीं है बल्कि यह वही दीन है जिसके मानने वाले आदम से लेकर ईसा तक थे! अब दूसरी ओर से देखे तो यह सारे पैग़ंबर/अवतार वही दीन को मानने वाले है जो भारत से शुरू हुआ !!

6) गीता मे कृष्ण कहते है इसी धर्म का / ग्यान का उपदेश मैने पहिले सुर्य को किया था फिर उसने वैवस्वत मनू को किया और मनू ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को कहा था वही धर्म मै तुम्हे फीर से बताता हू अर्जून 

श्रीमत भगवत गीता के चौथे अध्याय के पहिले तीन श्लोकोमें यही बात कही गयी है वो श्लोक और और उसके भावार्थ निचे दिये है।

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌ ।

विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥4.1॥

भावार्थ : श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा॥4.1॥

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।

स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप৷৷4.2৷৷

भावार्थ : हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया॥4.2॥

स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।

भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्‌ ৷৷4.3৷৷

भावार्थ : तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिए वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात गुप्त रखने योग्य विषय है ॥4.3॥

इससे यही साबित होता है की पूरातन ग्यान ही बारबार पुन्ह स्थापीत हूवा है इस्लाम भी यही कहता है की कोई नयी बात नही बतायी जा रही है बलकी आप जीसे भूल चूके उसी को कहा जा रहा है ।

इन दोनो बातो मे अंतर है तो बस भाषा और परिवेश का बाकी भावार्थ तो एक जैसा ही है सब का । 

7) कुरान मे आसमानी जहीफ़ों (किताबों) का उल्लेख है जो अल्लाह ने अपने नबियों को दी,, मैंने कई विद्वानो को यह लिखते देखा है कि चारो वेदो मे लिखी वाणी ईश्वरी है!! वेदो  में स्वयंभू मनू से लेकर कल्कि अवतार तक का उल्लेख मिलता है, तो क्या ये एक ही श्रृंखला नहीं है जो आदम (स्वयंभू मनु) से शुरू है और मुहम्मद साहब  तक चली आती है। और मोहम्मद साहब ने भी उसका वर्णन महदी या मेहंदी अले इस्लाम तक कीया है ।

इस्लाम मे भी जहीफ़ों किताबों के बारे मे ये अबुज़र ग़फ़्फ़ारी राज़ी° से रिवायत है मैं ने अर्ज़ किया। या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह तआला ने कुल कितनी किताबें नाज़िल फरमाई। फ़रमाया 104 और हज़रत शीश अलैहिस्सलाम पर 50 सहीफ़े नाज़िल हुए। और अब इंसानो का शजरा शीश अलैहिस्सलाम से ही मिलता है।  बाक़ी आदम अलैहिस्सलाम की नस्ल ख़त्म हो गई थी।

यानी असमानी किताबे सिर्फ चार ही है ये मान्यता एकदम सटीक नही है खूद मोहम्मद पैगंबरजी ने इनकी सख्या 104 से अधीक बताई है।

अब सवाल उठता है कि जब स्रोत एक ही है तो फिर भिन्नता क्यों?? इसका सटीक उत्तर यह है कि जब आदम या मनु की संतानें पूरी दुनिया मे फैलीं तो भौगोलिक परिस्थितियां/ जलवायु आदि वह कारक थे जिनकी वजह से इनके खानपान/ रहनसहन भाषा आदि मे परिवर्तन आता गया और धर्म कभी भी इन परिवर्तनो को नकारता नहीं है!!

भारत मे शाकाहार को उच्च स्थान मिला तो उसका कारण था कि यहा कि धरती हरी भरी थी और यदि अरब मे मांसाहार है तो कारण यह कि वहाँ कुछ उगता ही नहीं था तो जीवन यापन मांसाहार के बिना संभव ही न था !! इस ही तरह कई ऐसे नियम है जैसे तलाक/ 4 शादियां आदि जिनको समझने के लिए उस वक़्त के हालत और लोगो का मिजाज समझना बहुत ज़रूरी है, साथ साथ या भी समझ लें कि इन नियमो को फर्ज़ नहीं करार दिया गया है !!

इस ही तरह धार्मिक ग्रंथो मे भी भाषा आदि के कारण कभी कभी नामों मे भी परिवर्तन दिखाई देता है जो होता नहीं है!! उदाहरण के तौर पर अरबी मे आदम तो इंग्लिश मे एडम, और वैदिक संस्कृती मे मनु (स्वयंभू मनु यानी जो बीना माता पीता के परमात्मा के मन से निर्मित हूये) कहा गया है ये  तीनो नाम अलग अलग लगते है पर एक ही व्यक्ती को वर्णित करते है जिससे सृष्टीचक्र मे मानव सभ्यता की नीव रखी गयी। कुरान मे एक शब्द आया  है “जुल किफल” जिसका अर्थ है किफल वाले और कई इस्लामिक विद्वान इसका हिन्दी अनुवाद “कपिल वाले” करते है यानी कि “गौतम बुध या फिर कपील ॠषी ” !!

8) अब कुरान, बाईबल और पूरानों मे एक कथा लगभग एक जैसी आती है वो है जलप्रलय की और उसमे प्रसिध्द है की परमात्मा ने एक नौका बनाने का आदेश दीया और चूने हूये लोगोंकी और बीज रूप मे जीवसृष्टी की स्वयंम रक्षा की और मानव सभ्यंता सृष्टी मे कायम रही इसके लिये एक इन्सान को मध्यम बनाया जिसका नाम पुरानोंमे वैवस्वत मनु है तो बाईबल मे नोहा और कुरान मे नू अले इस्लाम है। नौका भी तीनो कथावोंमे है। इसका मतलब ये नही की ये तीनो अलग अलग व्यक्ती थे बल की ये है की व्यक्ती एक ही था नौका एक ही थी जिससे जिवसृष्टी की रक्षा हूयी बस भाषा और परवेश के नूसार नाम अलग अलग मीले है ।

9) यहूदियोंमे इश्वर का एक नाम बहोत प्रचलित है यहोवा इसका अर्थ है मै जो हू सो हू जब मुसा / मोझेस को इश्वर ने अग्नी मे रहे के भी जो जल नही रहा एसे पेड या झाडियों के रूप मे दर्शन दिया तो मुसा ने उन से उनका नाम पूछा तब परमात्मा मे उत्तर दिया यहोवा यानी मै जो हू सो हू मै हर कीसी के लिये हर कोई होता रहता हू जो मूझे जैसा जानना चाहता है मै उसके लिये वैसा ही बन जाता हू मै जो हू सो हू।

गीता के  चौथे अध्याय के ग्यारवे श्लोक मे भगवान कहते है।

ये यथा माँ प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्‌ ।

मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥ 4.11৷৷

भावार्थ : हे अर्जुन! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ।

तुलसीदासजी ने इसका वर्णन बहोत सरल शब्दो मे कीया है जा की रही भावना जैसी प्रभू मुरती देखी तीण तैसी ।

वास्तविकता यही है कि ईश्वर एक है , हम सभी एक माता / पिता की संताने है, अब सबके मार्ग अलग अलग हो सकते है, हर किसी को अपने मार्ग को सही कहने का तो पूरा अधिकार है , परंतु दूसरे के मार्ग को गलत ठहराने का कोई अधिकार किसी को नहीं !!

मेरा अनुरोध है कि इस विषय को और आगे बढ़ाएं और देश मे एकता की एक नयी सोच विकसित करें!!!

यहा कुछ विषय विस्तारता के कारण से नही लिये है उनके लिये और कुछ स्वतंत्र लेक लिखूंगी जिनमे धर्मो के साम्य भेदोंको और उनकी एकता को अधिक विस्तार से वर्णन कर सकू।

✍️ *लेखीका : डाॅ रेश्मा पाटील* 

 🇮🇳 *निपाणी*

🗓️ *तारीख : 27/5/2022* 

📱  *मो नं 7411661082*

📲 *व्हाटसअॅप* *: 9901545321*  

📧 *ईमेल :* *reshmaazadpatil@gmail.com* 

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प्रा.डाॅ. रेश्मा आझाद पाटील M.A.P.hd in Marathi

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